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विश्‍व में बजेगा आयुर्वेद का डंका, बजट आवंटित, अब बनेगा पहला WHO-ग्‍लोबल सेंटर

नई दिल्‍ली. कोरोना महामारी के आने के बाद से विश्‍व में भारत की प्राचीन चिकित्‍सा पद्धतियों की मांग भी बढ़ गई है. सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्‍व के देशों ने भी आयुर्वेद के उपायों का इस महामारी में जमकर इस्‍तेमाल किया और स्‍वास्‍थ्‍य लाभ लिया.

आयुर्वेदिक दवाओं (Ayurvedic Medicine) से लेकर घर और बाहर मौजूद जड़ी-बूटियों,पेड़-पौधों और वनस्‍पतियों को भी उपयोग में लाया गया. हालांकि अब आयुर्वेद को लेकर भारत में एक बड़ा काम होने जा रहा है, इससे न केवल विश्‍व स्‍तर पर आयुर्वेद की स्‍वीकार्यता बढ़ेगी बल्कि इस चिकित्‍सा पद्धति को विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (World Health Organisation) के अंतर्गत नए नए रिसर्च, शोध और प्रसार का भी मौका मिलेगा. इस बार भारत सरकार की ओर से जारी किए गए बजट 2022 में डब्‍ल्‍यूएचओ ग्‍लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन (WHO-Global Center for Traditional Medicine) के लिए अच्‍छा खासा बजट आवंटित किया गया है. लिहाजा इस साल इस पर काम शुरू हो जाएगा.

भारत में विश्व के पहले डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन की स्थापना को लेकर साल 2020 में ही डब्‍ल्‍यूएचओ की ओर से घोषणा कर दी गई थी. केंद्र सरकार ने इस बार आयुष मंत्रालय को 3050 करोड़ का बजट आवंटित किया है. खास बात है कि यह पारंपरिक चिकित्सा खासतौर पर आयुर्वेद के लिए विश्व का पहला और एकमात्र डब्‍ल्‍यूएचओ ग्लोबल सेंटर होगा. इसका सीधा असर देश में पारंपरिक औषधि सेक्टर को बढ़ावा देने के साथ ही इसमें होने वाले निवेश में देखने को मिलेगा. इससे न केवल आयुर्वेद एक बेहतर चिकित्‍सा विकल्‍प के रूप में उभरेगा बल्कि वैश्विक चिकित्‍सा क्षेत्र में भारत की अपनी विशेष पहचान बनेगी. अभी भारत तक सीमित इस चिकित्‍सा पद्धति में अब विदेशी सहयोग भी बढ़ेगा. इसके साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में आयुर्वेद का लाभ बाकी देशों को भी मिल सकेगा.

डब्ल्यूएचओ- वैश्विक पारंपरिक औषधि केंद्र (Global Centre for Traditional Medicine in India)विशेष रूप से उस चिकित्‍सा पद्धति को बढ़ाने और बाकी देशों में फैलाने वाला केंद्र होगा जो भारत में में परंपरागत रूप से इस्‍तेमाल की जा रही हैं. भारत में आयुर्वेद प्राचीन काल से अपनाई जाने वाली चिकित्‍सा पद्धति है. काफी पहले से भी आयुर्वेद को लेकर अन्‍य देशों की विशेष रूचि रही है लेकिन अब डब्‍ल्‍यूएचओ ने भी इसको लेकर अहम घोषणा की है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के डीजी डॉ. टेडरॉस अधनोम घेब्रेयसस ने कहा था कि लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल में दवाओं की पारंपरिक प्रणाली जैसे आयुर्वेद का अहम योगदान है लेकिन इस पर विशेष ध्‍यान नहीं दिया गया है. चूंकि आयुर्वेद साक्ष्‍यों पर आधारित है ऐसे में यह पारंपरिक दवा प्रणाली काफी उपयोगी है. वहीं देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि भारत की यह पारंपरिक संपदा विश्‍व के बाकी देशों को भी लाभ दे सकती है.

आयुर्वेद की जानकारी को किताबों और पांडुलिपियों से बाहर लाने के अलावा घरों पर होने वाले उपचारों से न केवल आधुनिक जरूरतों को पूरा किया जाएगा बल्‍कि प्राचीन मेडिकल ज्ञान के क्षेत्र में भारत में की जा रहीं नई नई रिसर्च मॉडर्न साइंस (Modern Science) को भी सहयोग देंगी. ऐसे में भारत में बनाया जा रहा यह ग्‍लोबल सेंटर आयुर्वेद को आगे ले जाने में कारगर होगा. कोरोना महामारी के दौरान ही देखा गया है कि भारत से आयुर्वेदिक उत्‍पादों (Ayurvedic Products) का निर्यात करीब 45 फीसदी तक बढ़ा है. इनमें हल्‍दी, अदरक, भारत के मसाले, आयुर्वेदिक इम्‍यूनिटी बूस्‍टर की मांग सबसे ज्‍यादा रही. ऐसे में कोरोना के दौरान एक तरफ वैक्‍सीनेशन (Vaccination) तो दूसरी तरफ आयुर्वेदिक उपायों को विश्‍व ने अपनाया. लिहाजा इस सेंटर के बनने के बाद इस दिशा में काफी प्रगति होने का अनुमान है.

भारत में पहले से आयुर्वेद पर हो रहा काम
भारत में आयुर्वेद को लेकर काफी काम हो रहा है. आयुष मंत्रालय की ओर से किए जा रहे प्रयासों के अतिरिक्‍त एनएसआरआईआर और ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद दिल्‍ली के अलावा गुजरात और राजस्‍थान में भी दो नए आयुर्वेद संस्‍थान अपग्रेड किए गए हैं. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री की ओर से शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी को भी आयुर्वेदा फिजिक्‍स और आयुर्वेदा कैमिस्‍ट्री में नए अवसर तलाशने के लिए कहा गया है.

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