उत्तराखंड में फाइलों में अटकी प्रदेश की 12 सौ सड़कें
देहरादून : वन भूमि की बंदिशों के चलते प्रदेश की 12 सौ सड़कें फाइलों में कैद हैं। इनमें जिलों से लेकर भारत सरकार के स्तर पर फाइलें अटकी पड़ी है। सड़क में देरी से 36 सौ गांव की 10 लाख से ज्यादा की आबादी स्वीकृति को लेकर उम्मीदें लगाए हुई हैं।
पहाड़ में लोग सड़क को विकास की उम्मीदों से जोड़ते हैं। सड़क बनने के बाद स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार के आयाम बढ़ जाते हैं। मगर, प्रदेश में वन भूमि की पाबंदी से सुदूरवर्ती गांव को जोड़ने वाली 1199 सड़कें वर्षों से लटकी पड़ी है। इसमें सबसे ज्यादा 487 लोनिवि के खंड स्तर पर, 140, नोडल अधिकारी, 81 प्रभागीय वनाधिकारी, 46 भारत सरकार और 9 पार्क व वन्यजीव कार्यालय में स्वीकृति के इंतजार में फाइलों में कैद है।
वन भूमि प्रकरणों के चलते सबसे कम उधमसिंहनगर 5 व हरिद्वार की 6 सड़कें और सबसे ज्यादा 255 सड़कें अल्मोड़ा जिले में लंबित पड़ी हैं। इसके अलावा पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, टिहरी, नैनीताल, गोपेश्वर में भी स्वीकृति को अटकी सड़कों की संख्या 50 के पार हैं। एक सड़क दो से तीन गांव, कस्बे को जोड़ती हैं। इसके हिसाब से करीब 36 सौ से ज्यादा गांव इन सड़कों से लाभांवित होंगी।
आठ सौ करोड़ का बजट
लोक निर्माण विभाग ने सर्वे करने के बाद इन सड़कों पर करीब आठ सौ करोड़ का बजट मुआवजा, मलबा डंपिंग, कटिंग, पेटिंग और पुल बनाने के लिए प्रस्तावित किया है। इसमें प्रथम व द्वितीय चरण में इन सड़कों का निर्माण कार्य किया जाना है।
एचओडी (लोनिवि उत्तराखंड) एचके उप्रेती का कहना है कि वन भूमि स्वीकृति के प्रस्तावों की लगातार जिले से लेकर भारत सरकार तक पैरवी की जा रही है। जो भी क्वारी मांगी जाता, उसे पूर्ण कर दिया जा रहा है। जल्द स्वीकृति मिलने से सड़कों का निर्माण तेजी से किया जाएगा। देरी से हर साल सड़क बनाने का बजट भी बढ़ रहा है।