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”तानाजी: द अनसंग वॉरियर” में सैफ ने दी है अजय देवगन को कांटे की टक्कर

भारत के इतिहास में ऐसे तमाम वीर है जिनकें बाहदुरी के किस्से और कहानियों को हम सभी ने बचपन से ही सुना है। भारत के वीरों में से एक थे मराठा सूबेदार तानाजी मालुसरे। तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के काफी खास मानें जाते थे तानाजी को शिवाजी का दाहिना हाथ माना जाता था और उन्होंने बड़ी-बड़ी लड़ाईयां लड़ी थी। इन्हीं लड़ाइयों में से एक लड़ाई थी सिन्हागढ़ लड़ाई। इस लड़ाई को आधार बना कर बनाई गयी है अजय देवगन, काजोल और सैफ अली खान की फिल्म तानाजी: द अनसंग वारियर। अगर आप ये फिल्म देखने सिनेमाघर जा रहे हैं तो जान लिजिए कैसी है फिल्म-

फिल्म की कहानी

फिल्म के स्टोरी की बात करें तो हमें 17वीं सैंचुरी की कुछ खास इंवेट्स देखने को मिलेंगे। जब मराठा और मुगलों के बीच काफी तनाव का माहोल था। फिल्म का मेन फोकस है अजय देवगन के केरेक्टर तानाजी मालुसरे पर। फिल्म में तानाजी का बचपन दिखाया जाता है और यहां उनके पिता की मौत हो जाती है। इतिहास में तानाजी के पिता सरदार कालोजी की ज्यादा जानकारी नहीं है।

फिल्म की स्टोरी कोढांला किले की लड़ाई पर आधारित है। कोढांला पुणे के पास बना यह किला बहुत ही ज्यादा खास था और हर कोई इस किले पर कब्जा करना चाहता था। मुगलों की उत्तर दिशा में पहले से ही अच्छी पकड़ थी और वह कोढांला किले की मदद से दक्षिण दिशा में भी अपना सम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। और यह मराठा के लिए चिंता की बात थी। 1657 से लेकर 1664 तक कोढांला किला शिवाजी महराज के पास था लेकिन 1665 में किसी कारण से शिवाजी को यह किला गंवाना पड़ा।

शिवाजी की माताजी जीजाबाई को यह बात बिल्कुल मंजूर नहीं थी कि यह किला मुगलों के पास रहे इसलिए 1670 में राजमाता जीजाबाई ने एक कसम खाई कि जब तक उन्हें कोढांला किला वापस नही मिल जाता तब तक वह खाने पिने का त्याग करेंगी। इस फिल्म में जीजाबाई की कसम थोड़ी अलग है यहां पर उनकी कसम है कि वो जूते नहीं पहनेंगी। शिवाजी को अपनी माताजी की यह इच्छा किसी भी हाल में पूरी करनी थी लेकिन कोढांला जीतना बहुत मुशिकल काम था क्योंकि उस किले की रक्षा औरगंजैब का खास सिपाही उदयभान राठोढ़ कर रहा था जिसका रोल कर रहे है सैफ अली खान। उदय भान एक राजपूत था लेकिन अपनी लालची इरादों के कारण वह मुगलो का साथ दे रहा था।

वहीं शिवाजी ने कोढांला किले पर कब्जा जमाने का यह खास काम अपने खास दोस्त और सेनापति तानाजी मालुसरे को सौंपा। उस वक्त तानाजी अपने बेटे की शादी की तैयारियों में व्यस्त थे लेकिन राजमाता की इच्छा और शिवाजी के हुक्म का पालन करने के लिए उन्हेंने अपने बेटे की शादी छोड़ दी और जंग की तैयारियों में लग गए। 4 फरवरी 1670 की रात को तानाजी लगभग 700 से 800 सौनिक लेकर कोढांला की और निकल पड़े उस किले की सुरक्षा काफी मजबुत थी और 5000 मुगल सिपाही उस किले की रक्षा कर रहे थे। लेकिन किले के पीछे के हिस्से पर कोई भी पहरा नहीं था क्योकि उस हिस्से कि दीवार काफी ऊंची और बड़ी थी और वहां पर कोई भी दरवाजा नहीं था और तानाजी ने इसी दिवार पर चढ़ाई करने का फैसला कर लिया। इस काम के लिए उन्होंने इस्तेमाल किया बंगाल मोनिटर लिजार्ड का जिसे घोरपड़े भी कहा जाता है।

यह एक ऐसा जानवर है जिसकी पकड़ काफी मजबुत होती है तानाजी ने इसी लिजार्ड पर रस्सी बांध कर किले के उस पार फैंका और इस रस्सी की मदद से तानाजी समेत 700 सैनिक ने किले पर चढा़ई कर दी। किले पर पहुचते ही शुरू हुई भयानक लड़ाई। 5000 मुगल सैना को 800 मराठा सैनिक खतरनाक टक्कर दे रहे थे। तानाजी उदय भान से मुकाबला कर रहे थे। लंबी लड़ाई के बाद मराठा सैनिक कोढांला किला जीत लेते है लेकिन इस जंग में तानाजी शहीद हो जाते है। तानाजी को उदयभान ने मारा था। शिवाजी को किला जितने की जितनी खुशी नहीं हुई उससे ज्यादा दुख तानाजी को खोने का था। शिवाजी ने कोढांला किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ किला नाम रख दिया क्योकि वह तानाजी को सिंह बोलते थे।

फिल्म रिव्यू

तानाजी के किरदार में अजय देवगन ने शानदार काम किया है। अपने रोल में वह एकदम पर्फेक्ट लग रहे हैं। उनके चेहरे पर एक निष्ठावान योद्धा के भाव साफ दिखाई पड़े हैं। ट्रेलर देख कर सोशल मीडिया पर कहा गया था कि तानाजी रोल में अजय खास नहीं लग रहे हैं लेकिन अजय देवगन ने फिल्म में बेहतरीन लगें हैं। लेकिन कहीं ना कहीं आपको उन्हें देखकर बाजीराव सिंघम की याद भी आएगी। तानाजी जी पत्नी सावित्री बाई का किरदार काजोल ने निभाया है। अजय और काजोल को सालों बाद स्क्रीन पर साथ देखकर अच्छा लगता हैं। दोनों की जोड़ी खूबसूरत लग रही हैं और काजोल ने अच्छी एक्टिंग की हैं। अब बात करते है फिल्म के विलेन की तो इस बार फिल्म में विलेन का किरदार काफी दमदार रहा सैफ अली खान अपनी दमदार परफॉरमेंस से अजय को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं। सैफ के सामने आपका ध्यान किसी और एक्टर पर जाएगा ही नहीं। उदयभान राठौड़ के बेहद खूंखार किरदार में सैफ ने इस कदर जान भरी है कि आप उन्हें आने वाले समय में याद करेंगे। इनके किरदार को देखकर आपको पद्मावत के खिलजी की याद आ जाएगी। शरद केलकर ने भी अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है। उनका रोल भी शानदार है। तानाजी: द अनसंग वॉरियर का निर्देशन ओम राउत किया है। फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो है फिल्म के विजुअल इफेक्ट, ग्राफिक्स (वीएफएक्स) शानदार हैं और एक्शन फर्स्ट क्लास। देख कर मजा आता है। फिल्म को 3-डी में देखने में ज्यादा मजा आएगा। जब भाले और तीर चल रहे होते हैं, तो कई बार गर्दन अपने आप दायें-बायें हो जाती है। फिल्म का संगीत वीर रस से ओतप्रोत है। Source प्रभा साक्षी

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