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भारतीय भाषाओं की नई शब्दावली को बदलते समय के अनुकूल होना चाहिए: उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया है। श्री नायडू ने सभी से व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से इसके लिए प्रयास करने का आग्रह किया।

उपराष्ट्रपति ने ये टिप्पणी अमेरिका के वांगुरी फाउंडेशन की 100वीं पुस्तक के वर्चुअल माध्यम से विमोचन के अवसर पर की। ‘7वा प्रपंच साहित्य सदासु सभा विशेष संचिका’ नामक पुस्तक पिछले साल अक्टूबर में अन्य तेलुगु सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से अमेरिका के वांगुरी फाउंडेशन द्वारा आयोजित 7वें विश्व तेलुगु साहित्य शिखर सम्मेलन पर आधारित है।

प्रसिद्ध गायक श्री एस पी बालासुब्रमण्यम को पुस्तक समर्पित करने के लिए संपादकों, लेखकों और प्रकाशकों को बधाई देते हुए उपराष्ट्रपति ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की और पहल करने का आह्वान किया। उन्होंने पिछले 27 वर्षों के दौरान तेलुगु भाषा सम्मेलनों के आयोजन के लिए वांगुरी फाउंडेशन की भी सराहना की।

यह देखते हुए कि इंटरनेट और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के विकास ने हमें अपनी भाषाओं के संरक्षण और विकास के नए अवसर प्रदान किए हैं, उपराष्ट्रपति ने इन प्रौद्योगिकियों का प्रभावी उपयोग करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जिस दिन हमारी भाषा को भुला दिया जाएगा, हमारी संस्कृति भी विलुप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन साहित्य को युवाओं के निकट लाया जाना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने तेलुगु भाषा के लिए काम करने वाले संगठनों से तेलुगु की समृद्ध साहित्यिक संपदा को सभी के लिए उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेने का आग्रह किया। पारंपरिक शब्दावली को सभी के लिए सुलभ बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए, श्री नायडू ने कहा कि मौजूदा शब्दों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना और बदलते रुझानों के अनुरूप नए तेलुगु शब्दों का निर्माण करना आवश्यक है। इस कार्यक्रम में दुनिया भर से तेलुगू जगत के प्रतिनिधियों, तेलुगू भाषा के प्रति उत्साही लोगों और तेलुगू लेखकों ने भाग लिया, जिन

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