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संसदीय समितियां विधायिका के लिए कार्यपालिका की प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं: रामनाथ कोविन्द

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द ने कहा कि आम तौर पर संसदीय समितियां और विशेष रूप से लोक लेखा समिति (पीएसी) विधायिका के लिए कार्यपालिका की प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करती हैं। उन्होंने संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में संसद की लोक लेखा समिति के शताब्दी समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि एक लोकतंत्र में संसद लोगों की इच्छा को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। विभिन्न संसदीय समितियां इसके विस्तार के रूप में काम करती हैं और इसके कार्य पद्धति में बढ़ोतरी करती हैं। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि चूंकि संसदीय समितियां सदनों को सभी मुद्दों पर चर्चा व बहस को नियत करती हैं, दूसरी ओर संसद सदस्यों के चयनित समूह चुनिंदा मामलों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, इसे देखते हुए यह श्रम का एक अभिनंदन करने योग्य विभाजन है। उन्होंने आगे कहा कि संसदीय समितियों के बिना एक संसदीय लोकतंत्र अधूरा हो जाएगा। यह पीएसी है, जिसके जरिए नागरिक सरकार के वित्त पर निगरानी रखते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में जवाबदेही, शासन की धुरी है। इसे देखते हुए यह स्पष्ट है कि जनप्रतिनिधियों की एक समिति, जो लोक लेखाओं की जांच करती है, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लोक लेखा समिति को अपना विवेक दिखाने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह संसाधनों को बढ़ाने के बेहतर तरीके खोजने में सहायता करती है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यह संसाधनों को लोगों के कल्याण पर कुशलतापूर्वक खर्च करने में मदद करती है। उन्होंने कहा कि संसद, कार्यपालिका को निधि जुटाने और खर्च करने की अनुमति देती है, इसलिए यह कर्तव्य है कि इसका आकलन किया जाए कि प्राप्त की गई निधि को इसके अनुरूप खर्च किया गया या नहीं।

राष्ट्रपति ने कहा कि कई दशकों से पीएसी का रिकॉर्ड सराहनीय और अनुकरणीय रहा है। स्वतंत्र विशेषज्ञों ने भी इसके कार्यप्रणाली की सराहना की है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्ववर्तियों में से एक, श्री आर वेंकटरमन और हमारे तीन भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों- श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री पी.वी. नरसिंह राव और श्री इंदर कुमार गुजराल ने भी पीएसी में अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि अगर किसी तरह की तकनीकी अनियमितताएं हैं, तो इनका पता लगाने के लिए पीएसी न केवल कानूनी और औपचारिक, बल्कि अर्थव्यवस्था, विवेक, ज्ञान और उपयुक्तता के दृष्टिकोण से भी सार्वजनिक व्यय की जांच की है। उन्होंने कहा कि बर्बादी, नुकसान, भ्रष्टाचार, अपव्यय और अक्षमता के मामलों को ध्यान में लाने के अलावा इसका कोई दूसरा उद्देश्य नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि अगर ईमानदार करदाताओं से प्राप्त हर एक रुपये में से अधिक पैसे जरूरतमंदों और राष्ट्र-निर्माण से संबंधित पहलों के लिए पहुंच रहे हैं, तो इस प्रक्रिया में पीएसी और उसके सदस्यों ने बड़ी भूमिका निभाई है।

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