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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चेन्नई में जी20 पर्यावरण और जलवायु मंत्रियों की बैठक को संबोधित किया

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज वीडियो संदेश के माध्यम से चेन्नई में आयोजित जी20 पर्यावरण और जलवायु मंत्रियों की बैठक को संबोधित किया।

चेन्नई में गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह शहर संस्कृति और इतिहास में समृद्ध है। उन्होंने प्रतिभागियों से ‘अवश्य यात्रा करने योग्य’ यूनेस्को के विश्व धरोहर गंतव्य स्थल ममल्लपुरम का अन्वेषण करने का आग्रह किया, जो प्रेरणा देने वाले पत्थर की नक्काशी और इसके महान सौंदर्य का अनुभव कराता है।

प्रधानमंत्री ने लगभग दो हजार वर्ष पहले हुए महान कवि तिरुवल्लुवर का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि मेघ धरा से ग्रहण किए गए जल को बारिश के रूप में लौटाते नहीं है तो महासागर भी सूख जाएंगे। ‘उन्होंने प्रकृति और भारत में शिक्षण के नियमित स्रोत बनने के इसके तौर-तरीको के बारे मे बोलते हुए प्रधानमंत्री ने एक और संस्कृत श्लोक को उद्धृत किया और समझाया ”न तो नदियाँ अपना पानी स्वयं पीती हैं और न ही पेड़ अपने फल खाते हैं। बादल भी अपने पानी से पैदा होने वाले अन्न को नहीं खाते हैं।” प्रधानमंत्री ने प्रकृति के लिए वैसे ही प्रावधान करने पर जोर दिया जैसे प्रकृति हमारे लिए  करती है। उन्होंने कहा कि धरती माता की रक्षा और देखभाल करना हमारी मौलिक जिम्मेदारी है और आज इसने ‘जलवायु कार्रवाई’ का रूप ले लिया है क्योंकि बहुत लंबे समय से कई लोगों द्वारा इस कर्तव्य को नजरअंदाज किया गया हैं। भारत के पारंपरिक ज्ञान के आधार पर, प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु कार्रवाई को ‘अंत्योदय’ का अनुपालन करना चाहिए जिसका अर्थ है समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान और विकास सुनिश्चित करना। यह देखते हुए कि ‘ग्लोबल साउथ’ के देश, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय मुद्दों से बहुत प्रभावित हैं, प्रधानमंत्री ने ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन’ और ‘पेरिस समझौते’ के तहत प्रतिबद्धताओं पर अधिक कार्रवाई करने की आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि ऐसा करना ग्लोबल साउथ की जलवायु-अनुकूल तरीके से विकासात्मक आकांक्षाओ को पूरा करने मे सहायता करने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

प्रधानमंत्री ने यह जानकारी देते हुए गर्व अनुभव किया कि भारत अपने महत्वाकांक्षी ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ के माध्यम से आगे बढ़ा है। उन्होंने उल्लेख किया कि भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी स्थापित विद्युत क्षमता को वर्ष 2030 के लिए निर्धारित लक्ष्य से 9 साल पहले ही  हासिल कर लिया है और अब अद्यतन लक्ष्यों के माध्यम से इसने अधिक ऊंचे मानक निर्धारित किए है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के रूप में आज भारत विश्व के शीर्ष 5 देशों में से एक है और बताया कि देश ने वर्ष 2070 तक ‘नेट जीरो’ हासिल करने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री ने इस बारे मे आशा व्यक्त की क्योंकि भारत अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, सीडीआरआई और ‘लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन’ सहित गठबंधनों के माध्यम से लगातार सहयोग कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने जैव विविधता संरक्षण, सुरक्षा, बहाली और संवर्धन के बारे मे लगातार किए जा रहे कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा “भारत एक विशाल विविधता वाला देश है”। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि जंगल की आग और खनन से प्रभावित प्राथमिकता वाले भूपरिदृश्यों की बहाली को ‘गांधीनगर कार्यान्वयन रोडमैप और प्लेटफॉर्म’ के माध्यम से मान्यता दी जा रही है। उन्होंने ग्रह पर ‘सात बड़ी बिल्लियों’ के संरक्षण के लिए हाल ही में शुरू किए गए ‘इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस’ का भी  उल्लेख किया और इसका श्रेय ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ से मिली सीख को दिया जो एक अग्रणी पहल है। उन्होंने बताया कि प्रोजेक्ट टाइगर के परिणामस्वरूप आज दुनिया के 70 प्रतिशत बाघ भारत में पाए जाते हैं। प्रधानमंत्री ने प्रोजेक्ट लायन और प्रोजेक्ट डॉल्फिन पर विचाराधीन काम का भी उल्लेख किया।

उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि भारत की पहल जनता की भागीदारी से संचालित होती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘मिशन अमृत सरोवर’ एक विशिष्ट जल संरक्षण पहल है जिसके तहत एक वर्ष में 63,000 से अधिक जल निकाय विकसित किए गए हैं। उन्होंने बताया कि इस  मिशन को पूरी तरह से सामुदायिक भागीदारी और प्रौद्योगिकी की सहायता से लागू किया गया है। उन्होंने ‘कैच द रेन’ अभियान का भी जिक्र किया, जिससे 250,000 पुन: उपयोग और पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण के साथ-साथ जल संरक्षण के लिए 280,000 से अधिक जल संचयन संरचनाओं के निर्माण को बढावा मिला है। यह सब लोगों की भागीदारी और स्थानीय मिट्टी और पानी की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करके अर्जित किया गया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने गंगा नदी को साफ करने के लिए ‘नमामि गंगे मिशन’ में सामुदायिक भागीदारी का प्रभावी रूप से उपयोग करने के बारे में बताया जिसके परिणामस्वरूप इस नदी के अनेक क्षेत्रो में गंगा डॉल्फिन के दोबारा प्रकट होने की महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई है। प्रधानमंत्री ने आर्द्रभूमि संरक्षण में रामसर स्थलों के रूप में नामित 75 आर्द्रभूमियों का उल्लेख करते हुए कहा कि एशिया में भारत के पास रामसर स्थलों का सबसे बड़ा नेटवर्क उपलब्ध है।

प्रधानमंत्री ने ‘छोटे द्वीपीय देशों’ का ‘बड़े महासागरीय देशों’ के रूप में उल्लेख करते हुए कहा कि इन देशो के लिए महासागर महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन हैं और ये विश्व भर में तीन अरब से अधिक लोगों की आजीविका में मदद भी करते हैं। उन्होंने कहा कि यह व्यापक जैव विविधता का घर है और उन्होंने  समुद्री संसाधनों के जिम्मेदार उपयोग और प्रबंधन के महत्व पर भी जोर दिया। प्रधानमंत्री ने ‘टिकाऊ और लचीली नीली और महासागर आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जी20 उच्च स्तरीय सिद्धांतों’ को अपनाने के बारे में आशा व्यक्त करते हुए जी20 से प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनी-बाध्यकारी और प्रभावी उपाय करने के लिए रचनात्मक रूप से काम करने का आह्वान किया।

प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासचिव के साथ ‘मिशन लाइफ -पर्यावरण के लिए मिशन लाइफस्टाइल’ की शुरुआत को स्मरण किया और कहा कि मिशन लाइफ पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में किसी भी व्यक्ति, कंपनी या स्थानीय निकाय द्वारा किए जा रहे पर्यावरण-अनुकूल कार्यों को  नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अभी हाल में घोषित ‘ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम’ के तहत अब ग्रीन क्रेडिट अर्जित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण, जल संरक्षण और टिकाऊ कृषि जैसी गतिविधियाँ अब व्यक्तियों, स्थानीय निकायों और अन्य लोगों के लिए राजस्व जुटा सकती हैं

अपने संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री ने यह दोहराया कि हमें प्रकृति माता के प्रति अपने कर्तव्यों को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि जी20 पर्यावरण और जलवायु मंत्रियों की यह बैठक उपयोगी और सफल सिद्ध होगी। “प्रकृति माता किसी खंडित दृष्टिकोण को पसंद नहीं करती हैं बल्कि “वसुधैव कुटुंबकम” – एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” को प्राथमिकता देती है।

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