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हमें अपनी कृषि विकास दर को कम से कम 22 फीसदी तक ले जाने की जरूरत है, जिससे आत्मनिर्भर और स्मार्ट गांव बन सकें: नितिन गडकरी

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आज यानी 27 अगस्त, 2022 को नागपुर स्थित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो के 46वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने विभिन्न अनुसंधान संगठन व प्रयोगशालाओं और उनके हितधारकों के बीच अधिक प्रभावी सहयोग, समन्वय और संचार की जरूरत को रेखांकित किया। श्री गडकरी ने आगे कहा कि विचारों की शक्ति का उपयोग करने और इन संस्थानों के निर्मित ज्ञान को समाज के अंतिम व्यक्ति तक ले जाने के लिए इसकी जरूरी है।

यह ब्यूरो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का एक स्वतंत्र संस्थान है। इसे मृदा सर्वेक्षण, भू-विज्ञान, जियोमॉर्फोलॉजी (पृथ्वी की भौगोलिक संरचना का अध्ययन), रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली, मानचित्रण, भूमि मूल्यांकन और भूमि उपयोग योजना के क्षेत्रों में राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली में अनुसंधान करने और इसे बढ़ावा देने के मिशन की जिम्मेदारी दी गई है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत में प्रति एकड़ कृषि उत्पादन वैश्विक मानकों की तुलना में बहुत कम है। हमारे फलों की गुणवत्ता भी पर्याप्त रूप से अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है। मंत्री ने आगे बताया कि चुनौती यह है कि अंतिम व्यक्ति को प्रभावी तरीके से सही और उचित ज्ञान कैसे उपलब्ध कराया जाए। श्री गडकरी ने कहा, “हमें क्षेत्रीय भाषा का उपयोग करने वालों के साथ लघु फिल्मों जैसे माध्यमों और स्थानीय कृषि कॉलेजों व विश्वविद्यालयों के जरिए गांवों में किसानों को मिट्टी, बीज, भूमि, जल, उर्वरकों की पसंद और सर्वश्रेष्ठ कृषि विधियों की जानकारी देनी चाहिए। इससे कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिलेगी। हमारी अर्थव्यवस्था जल, जमीन, जंगल और जानवरों पर आधारित है। जब अनुसंधान के नतीजे का उपयोग अंतिम व्यक्ति करते हैं, तो ज्ञान और अनुसंधान सही मायने में सार्थक हो जाते हैं।”

मंत्री ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो हर एक क्षेत्र में कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर काम कर सकता है, जिससे क्षेत्र की मिट्टी की गुणवत्ता का अध्ययन किया जा सके व किसानों को क्षेत्र की कृषि उत्पादकता में सुधार करने के बारे में बताया जा सके। उन्होंने आगे कहा, “हमें तकनीक और ज्ञान के परिवर्तन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने की जरूरत है। अगर हम समन्वित दृष्टिकोण से काम करें तो हम फसलों की उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए छोटे आकार के कारण हम 80 फीसदी संतरे का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। इस तरह की समस्याओं को संयुक्त रूप से काम करके समाधान किया जा सकता है।” मंत्री ने कहा कि एक बार जब हम जल, जमीन, मिट्टी व जलवायु और उनके बीच के आपसी संबंधों को समझ लेंगे, तो हम अपने प्रदर्शन में सुधार करने में सक्षम होंगे।

मंत्री ने सुझाव दिया कि जब सरकारी प्रयोगशालाओं के पास क्षमता पर्याप्त नहीं है तो इसमें निजी क्षेत्र को शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “चूंकि हम संतरे के पौधों की कमी का सामना कर रहे हैं, मैंने सुझाव दिया कि आपूर्ति के अंतर को पूरा करने के लिए निजी नर्सरी को शामिल किया जा सकता है, बशर्ते वे आईसीएआर के सुझाए गए नियमों का अनुपालन करें।”

इसके अलावा मंत्री ने ज्ञान को साझा करने की जरूरत पर जोर दिया, जिससे इसकी क्षमता को पूरी तरह से महसूस किया जा सके। उन्होंने आगे कहा, “कभी-कभी सरकारी प्रणालियां संगठनों को उनके पास मौजूद ज्ञान को साझा करने के लिए प्रेरित करने में विफल हो जाती हैं। ज्ञान को साझा किया जाना चाहिए और इसके प्रभाव का लेखा परीक्षण (ऑडिट) किया जाना चाहिए। केवल वित्तीय लेखा परीक्षण ही नहीं, प्रदर्शन का ऑडिट भी जरूरी है।” श्री गडकरी ने उदाहरण दिया कि कैसे इसरो की लिथियम आयन बैटरी तकनीक का लाभ ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने समय पर नहीं उठाया, यह इसका एक उदाहरण है कि अगर हम समन्वय और सहयोग के लिए अपनी प्रणाली में सुधार करते हैं तो हम कैसे बेहतर कर सकते हैं।

मंत्री ने नई प्रौद्योगिकी और अनुसंधान विधियों को अपनाने की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि कैसे सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय बिना एग्रीगेट का उपयोग किए मिट्टी स्थिरीकरण की तकनीक का उपयोग करके कंक्रीट की सड़कें बना रहा है। उन्होंने कहा कि हाल ही में अंडमान में इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। श्री गडकरी ने जैविक कार्बन का एक और उदाहरण दिया। केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हम जानते हैं कि मक्के की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जैविक कार्बन महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें यह सीखने की ज़रूरत है कि हमारी भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा कैसे बढ़ाई जाए। उदाहरण के लिए क्या ड्रोन का उपयोग करके रसायनों का छिड़काव करने से भूमि की गुणवत्ता के मानक बदलेंगे।”

श्री गडकरी ने राष्ट्र के विकास के लिए नागपुर स्थित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो के योगदान का उल्लेख किया। मंत्री ने रेखांकित किया कि हमें कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में सुधार करने की जरूरत है, जिस पर अधिकांश आबादी निर्भर करती है। उन्होंने आगे कहा, “हमें अपनी कृषि विकास दर को कम से कम 22 फीसदी तक ले जाने की जरूरत है। ऐसा करने से हमारे पास आत्मनिर्भर और स्मार्ट गांव होंगे। इससे गांवों, किसानों और गरीबों को लाभ होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में नई नौकरियां, विद्यालय, अस्पताल, कृषि आधारित उद्योग और सिंचाई सुविधाएं सामने आएंगी, जिससे हमारे गांव बदल जाएंगे।

राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो का मुख्यालय नागपुर में है और यह आईसीएआर के संस्थानों की श्रृंखला में से एक है। भूमि और मृदा संसाधनों पर गठित कार्यबल (1972), जिसने मिट्टी के सहसंबंध, समान नामपद्धति और उचित मिट्टी के मानचित्रण की आवश्यकता का सुझाव दिया था, की सिफारिशों और साथ ही 15 दिसंबर, 1973 को राष्ट्रपति की अधिसूचना के अनुरूप अनुसंधान, प्रशिक्षण, सहसंबंध, वर्गीकरण, मानचित्रण और व्याख्या के संबंध में ब्यूरो को कर्तव्य आवंटित किए गए।

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