अपराधियों से निपटने में विफल नीतिश सरकार देगी हथियार

राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इससे बेशक राज्य का चाहे कितना ही नुकसान क्यों ना हो। बिहार जैसा प्रदेश जो एक दौर में नस्लवाद और जातीय हिंसा के लिए कुख्यात रहा, अब भी अपराधों के मामले में पीछे नहीं हैं। बिहार में सत्ता में कोई भी राजनीतिक दल रहा हो, अपराधों से सभी का गहरा रिश्ता रहा है। बिहार में कानून-व्यवस्था हमेशा से एक चुनौती रही है। हालात यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार अपराध और अपराधियों पर लगाम लगाने में नाकाम रही है। इसका सरकार ने आसान विकल्प खोज लिया है। वह यह है कि अब मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य जैसे जनप्रतिनिधि आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी हथियार रख सकेंगे। जिससे लगभग ढाई लाख जनप्रतिनिधियों को फायदा मिलेगा। राज्य के गृह विभाग ने सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को इस संबंध में आवेदनों की प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का निर्देश जारी किया है। बिहार में आगामी चंद महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नीतिश सरकार के इस फैसले को चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है।
बिहार सरकार ने यह फैसला राज्य में पंचायत प्रतिनिधियों पर हमले और हत्याओं की बढ़ती घटनाओं के कारण लिया है। इसके विपरीत सच्चाई यही है कि ऐसा करके नीतिश सरकार ने ग्रामीण जनप्रतिनिधियों को साधने की कोशिश की है। यदि नीतिश कुमार के इस फैसले को पंचायत प्रतिनिधियों की सुरक्षा के हित में भी माना जाए तब यह प्रदेश में अपराध की हालत को दर्शाता है। जिस प्रदेश में जनप्रतिनिधी ही सुरक्षित नहीं हैं, वहां आम अवाम की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा। सवाल यह भी है कि लाखों की संख्या में हथियारों के लाइसेंस देने से क्या राज्य में हिंसा में बढ़ोत्तरी नहीं होगी। बिहार में यदि पुलिस तंत्र प्रभावी और मजबूत होता तो यह नौबत नहीं आती कि लाखों जनप्रतिनिधियों को हथियारों के लिए लाइसेंस दिया जाए। इससे जाहिर है कि मुख्यमंत्री नीतिश ने अपराध और अपराधियों पर नकेल कसने के बजाए हथियारों के लाइसेंस देने का आसान विकल्प चुना है। बड़ा सवाल यह भी है कि जनप्रतिनिधी अपनी सुरक्षा हथियारों से कर लेंगे, किन्तु प्रदेश की अवाम का क्या होगा।