राजनीति

सरसंघचालक की पहल से बदल सकती है जातिवाद की तस्वीर

योगेंद्र योगी
राजनीतिक उद्देश्य के निहितार्थ ही सही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अगड़े, पिछड़े और अंतरजातीय विवाह की शुरुआत करा कर देश में जातिवाद के दुष्चक्र को तोडऩे की दिशा में एक सकारात्मक पहल की है। देश की तरक्की और एकता-अखंडता का अक्ष्क्षुण रखने में समाज का जाति और उपजातियों में बंटा होना प्रमुख बाधा है। सदियों से चली आ रही जातिवाद की जड़े इतनी गहरी हैं कि इसको समूल उखाड़ कर देश का नवनिर्माण करना किसी दुष्कर चुनौती से कम नहीं है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने वाराणसी में पिता बनकर 125 लड़कियों का कन्यादान किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि विवाह समाज निर्माण का आधार है। इस भव्य समारोह में सवर्ण, दलित और पिछड़े समाज के 125 जोड़ों का सामूहिक विवाह वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न हुआ। इससे पहले भावगत और संघ परिवार कई बार हिन्दुओं की एकता की दुहाई दे चुके हैं। इस एकता में सबसे बड़ी बाधा जातिवाद है। आरएसएस की समझाइश के बावजूद जातिवाद का असर कम नहीं हुआ। इसके लिए सामूहिक विवाह की शुरुआत करा कर पहल की गई। जातिवाद तोडऩे की दिशा में यह महज एक कदम है, जबकि फासला सैकड़ों मील का है। यह संभव है कि आरएसएस आगे भी इसी तरह की पहल को जारी रखे। एक-एक कदम बढ़ा कर ही शायद एक दिन बगैर जाति के राष्ट्रवाद का सपना साकार हो सके। इसमें अभी भी बाधाओं की कमी नहीं है। ऐसा नहीं है कि आरएसएस और भाजपा का इसमें कोई छिपा हुआ राजनीतिक एजेंडा नहीं है।

राजनीतिक सिद्धि के बावजूद यह प्रयास सकारात्मक ही माना जाएगा। भाजपा ने केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बना कर यह साबित किया भी किया है वोट बैंक की मौजूदा जातिवाद की राजनीति के बावजूद विकास की बुनियाद पर सत्ता प्राप्त की जा सकती है। इसका बड़ा उदाहरण राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चयन में भी देखने को मिला। इससे पहले भाजपा भी अन्य राजनीतिक दलों की तरह राज्यों में बड़े नेताओं की बंधक बनी हुई थी। इन नेताओं की उपेक्षा करके चुनाव जीतना और किसी और को मुख्यमंत्री बनाना संभव नहीं था, किन्तु भाजपा ने यह भ्रम तोड़ दिया। इसके साथ जाति आधारित नेताओं के पार्टी को ब्लेकमेल किए जाने की परंपरा को भी पछाड़ दिया। हालांकि दूसरे राजनीतिक दलों में ऐसा करने का साहस अभी तक नहीं है, विपक्षी दलों में इसकी छटपटाहट जरूर नजर आती है।
अंतरजातीय विवाह करने पर अक्सर जातिवाद का कहर न सिर्फ नवविवाहितों को बल्कि उनके पूरे परिवार तक को झेलना पड़ता है। भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ऑनर किलिंग आम हैं। भारत में ऑनर किलिंग तब होती है जब कोई जोड़ा अपनी जाति या धर्म के बाहर शादी करता है। करनाल की एक सत्र अदालत ने खाप पंचायत के आदेश के विरुद्ध विवाह करने वाले एक युवा जोड़े की हत्या के लिए पांच लोगों को पहली बार मृत्युदंड की सजा सुनाई। इसने खाप पंचायत के एक सदस्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसने विवाह को अवैध घोषित कर दिया था और हत्या के समय वह मौजूद था।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और आठ राज्यों को नोटिस जारी कर ऑनर किलिंग को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी। सरकार ने सतर्कतापूर्ण रुख अपनाते हुए भारतीय दंड संहिता में संशोधन करने और खाप पंचायतों (जाति आधारित संविधानेतर निकाय) पर लगाम लगाने के पूर्व कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। हालांकि, इसने राज्यों से परामर्श करने और एक विशेष कानून बनाने की गुंजाइश पर विचार करने के लिए मंत्रियों के एक समूह का गठन करने का फैसला किया, जो ऑनर किलिंग को एक सामाजिक बुराई के रूप में मानेगा। प्रस्तावित ऑनर किलिंग कानून को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद है। कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि अगर सही तरीके से लागू किया जाए तो मौजूदा कानून ऑनर किलिंग को रोकने के लिए पर्याप्त हैं, जबकि अन्य का मानना है कि ऑनर किलिंग की समस्या से निपटने के लिए अधिक सख्त और विशिष्ट प्रावधानों की आवश्यकता है। भारत में 2019 और 2020 में ऑनर किलिंग की संख्या 25-25 थी और 2021 में 33 थी।

दलित ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क (डीएचआरडीनेट) द्वारा नेशनल काउंसिल फॉर विमेन लीडर्स (एनसीडब्ल्यू) के सहयोग से प्रकाशित एक रिपोर्ट में सात राज्यों- हरियाणा, गुजरात, बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश- में जाति आधारित ऑनर किलिंग की तस्वीर सामने रखी थी। रिपोर्ट में 2012 से 2021 के बीच के 24 मामलों पर नजर डाली गई है और लगभग सभी मामलों में पीड़ितों/सर्वाइवर्स को रिश्ते या शादी का विरोध करने वाले परिजनों के हाथों अत्यधिक हिंसा का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट में पाया गया कि कई मामलों में केवल एक व्यक्ति पर ही नहीं, बल्कि उसके परिवार के सदस्यों पर भी हमला किया गया। हरियाणा के एक मामले में अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले एक पूरे परिवार की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इसमें तमिलनाडु में एक अन्य मामले में एक जोड़ा ऐसा था, जो अंतरजातीय संबंध में था और साथ घर छोड़कर कहीं जाकर छिप गया था। चूंकि वे मिले नहीं, इसलिए लड़की के परिवार वालों ने बदला लेने के लिए लड़के की बहन का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी। इस मामले में पुरुष अनुसूचित जाति से और महिला थेवर जाति की थी। भारत में सम्मान आधारित अपराधों के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। इन मामलों की आईपीसी के मौजूदा प्रावधानों के तहत जांच की जाती है, और जब पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से ताल्लुक रखता है तो एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू होता है।

वर्ष 2012 में भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि विशेष रूप से ‘ऑनर क्राइम’ के लिए एक अलग कानून बनाया जाए। रिपोर्ट के हिस्से के तौर पर एक विधेयक ड्राफ्ट भी किया गया और उसमें किसी जोड़े को डराने-धमकाने के अपराधीकरण समेत विशिष्ट कानूनी कार्रवाई प्रस्तावित की गईं थी। हालांकि, ‘किसी भी सांसद ने इस बिल को संसद में पेश नहीं किया।’ रिपोर्ट बताती है कि विधि आयोग के किए कार्य को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। वर्ष 2018 में, शक्ति वाहिनी बनाम भारत सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनर किलिंग को एक गंभीर मुद्दे के रूप में मान्यता दी और ऑनर क्राइम की रोकथाम के लिए राज्य एवं पुलिस प्रशासन की जवाबदेही और जिम्मेदारी तय की। इस खतरे से निपटने के लिए अब तक कुछ गंभीरता दिखाने वाला एकमात्र राज्य राजस्थान है। वर्ष 2019 में राजस्थान ने 2012 के विधि आयोग की रिपोर्ट पर आधारित एक विधेयक विधानसभा में पेश किया। इसे अगस्त 2019 में राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया था। हालांकि, यह कानून नहीं बन पाया है क्योंकि इस पर राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए। जाति आधारित ऐसे सामाजिक बुराईयों से दो तरफा तरीकों से निपटना होगा। कानून में सुरक्षा की गारंटी के साथ अतंरजातीय विवाह संबंधों को प्रोत्साहित करने से देश की तस्वीर बदल सकती है।

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