उत्तर प्रदेश

अगर धरती पर कहीं जन्ऩत है तो वह माँ के कदमों के नीचे है!

(1) अगर धरती पर कहीं जन्नत है तो वह माँ के कदमों के नीचे है :- 

                एक माँ के रूप में नारी का हृदय बहुत कोमल होता है। वह सभी की खुशहाली तथा सुरक्षित जीवन की कामना करती है। माँ, यह वह शब्द है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। ईश्वर सभी जगह उपस्थित नहीं रह सकता इसीलिए उसने धरती पर माँ का स्वरूप विकसित किया, जो हर परेशानी और हर मुश्किल घड़ी में अपने बच्चों का साथ देती है, उन्हें दुनियाँ के हर कष्टों से बचाती है। बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले वह माँ बोलना ही सीखता है। माँ ही उसकी सबसे पहली दोस्त बनती है, जो उसके साथ खेलती भी है और उसे सही-गलत जैसी बातों से भी अवगत करवाती है। माँ के रूप में बच्चे को निःस्वार्थ प्रेम और त्याग की प्राप्ति होती है तो वहीं माँ बनना किसी भी महिला को पूर्णता प्रदान करता है। माता बच्चे की प्रथम पाठशाला है। ‘महिला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘मही’ (पृथ्वी) को हिला देने वाली महिला। विश्व की वर्तमान उथल-पुथल शान्ति से ओतप्रोत नारी युग के आगमन के पूर्व की बैचेनी है। मोहम्मद साहब ने कहा है कि अगर धरती पर कहीं जन्ऩत है तो वह माँ के कदमों के नीचे है।

(2) माँ, जिसे प्रेम और त्याग की मूरत कहा जाता है :-      

                महिला का स्वरूप माँ का हो या बहन का, पत्नी का स्वरूप हो या बेटी का। महिला के चारां स्वरूप ही पुरूष को सम्बल प्रदान करते हैं। पुरूष को पूर्णता का दर्जा प्रदान करने के लिए महिला के इन चारों स्वरूपों का सम्बल आवश्यक है। इतनी सबल व सशक्त महिला को अबला कहना नारी जाति का अपमान है। माँ तो सदैव अपने बच्चों पर जीवन की सारी पूँजी लुटाने के लिए लालायित रहती है। माँ ना सिर्फ अपने बच्चों को दुनियाँ की बुराइयों से बचाती है बल्कि वह अपने बच्चे की सबसे बड़ी प्रेरणास्त्रोत भी होती है। संसार की किसी भी महिला को देख लीजिए जितना त्याग और समर्पण वह अपनी संतान के लिए करती हैं शायद कभी कोई इस बारे में सोच भी नहीं सकता। आज के भौतिकवादी युग में केवल माँ ही है जो बिना किसी अपेक्षा या लालच के अपनी संतान को भरपूर प्रेम देती है। माँ, जिसे प्रेम और त्याग की मूरत कहा जाता है, मानव के लिए ईश्वरीय वरदान से कम नहीं है। इसलिए माँ की महत्ता को दरकिनार कर कोई भी व्यक्ति न तो जीवन में सफल हो सकता है और न ही आत्म संतुष्टि ही पा सकता है।

(3) दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों के नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं :-

                मातृ दिवस के दिन हम दादा-दादी व नाना-नानी के प्रति भी सम्मान व्यक्त करते हैं। संयुक्त परिवार में रहते हुए बचपन के वे दिन हमें आज भी याद आते हैं, जब हम दादा-दादी या नाना-नानी की गोद में सिर रखकर उनकी मीठी कहानियां सुनते-सुनते सो जाते थे। बाल्यावस्था का समय ऐसा होता है, जिसमें बच्चों में जिस तरह के संस्कार डाल दिये जाते हैं, वैसा ही उनका व्यक्तित्व निर्मित हो जाता है। और फिर जिन्दगी भर वही व्यक्तित्व उनकी सफलता व असफलता का मापदंड बन जाता है। आजकल के दौर में जब महिलाएं भी घर से बाहर काम करने जाती हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं तो ऐसे में अगर दादा-दादी व नाना-नानी का साथ मिल जाए तो वह खुद को सहज महसूस तो करते ही हैं, इसके अलावा उन्हें अपने परिवार की उपयोगिता भी भली-भांति समझ में आती है। अगर दादा-दादी और नाना-नानी का साथ हो तो बच्चे और अधिक भावुक और समझदार हो जाते हैं। इस प्रकार दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों को केवल लाड़-प्यार ही नहीं करते बल्कि उनके नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं। परिवार में बुजुर्गों के अभाव में जो बालक अपना समय टी.वी. कम्प्यूटर, इन्टरनेट आदि वैज्ञानिक उपकरणों के साथ व्यतीत करते हैं उनका मन-मस्तिष्क हिंसक गेम, फिल्में व कार्टून के प्रभाव से नकारात्मकता से भर जाता है और वे असामाजिक कार्यों में संलग्न होकर परिवार एवं समाज के वातावरण को दूषित ही करते हैं। पारिवारिक एकता ही विश्व एकता की आधारशिला है और जो परिवार मिलजुल कर प्रार्थना करते हैं वे परिवार सम्पन्न एवं समृद्धशाली हो जाते हैं। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि आने वाली पीढ़ी टी.वी., इन्टरनेट व कार्टून फिल्मों से ज्यादा समय अपने दादा-दादी, नानी-नानी व घर के सभी सदस्यों के साथ बितायें।

(4) अवतारों को जन्म देने वाली मातायें सदैव अमर रहेंगी :-

                                कृष्ण की माता देवकी ने प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और वह एक महान नारी बन गईं तथा उनका सगा भाई कंस ईश्वर को न पहचानने के कारण महापापी बना। देवकी ने अपनी आंखों के सामने एक-एक करके अपने सात नवजात शिशुओं की हत्या अपने सगे भाई कंस के हाथों होते देखी और अपनी इस हृदयविदारक पीड़ा को प्रभु कृपा की आस में चुपचाप सहन करती रही। देवकी ने अत्यन्त धैर्यपूर्वक अपने आंठवे पुत्र कृष्ण के अपनी कोख से उत्पन्न होने की प्रतीक्षा की ताकि मानव जाति का उद्धारक कृष्ण का इस धरती पर अवतरण हो सके तथा वह धरती को अपने भाई कंस जैसे महापापी के आतंक से मुक्त करा सके तथा धरती पर न्याय आधारित ईश्वरीय साम्राज्य की स्थापना हो। वे नारियाँ कितनी महान, पूज्यनीया तथा सौभाग्यशाली थी जिन्होंने राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, अब्राहीम, मूसा, जरस्थु, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह आदि जैसे अवतारों तथा संसार के महापुरूषों को जन्म दिया। प्रभु कृपा से युग-युग में धरती पर मानव जाति का कल्याण करने आये अवतारों ने मर्यादा, न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, अहिंसा, हृदयों की एकता आदि जैसे महान विचारों को अपनाने की शिक्षा समाज को देने हेतु धर्मशास्त्रों गीता, कुरान, बाईबिल, गुरू ग्रन्थ साहिब, त्रिपटक, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता का ज्ञान दिया।

(5) माँ की ममता-करूणा साधारण व्यक्ति को असाधारण बना देती है :-

                                धन्य है तुलसीदास जी की माँ जिन्होंने इस महान आत्मा को जन्म दिया। तुलसीदास जी ने अपनी आत्मा के सुख के लिए रामायण जैसी पुस्तक लिख डाली। रामायण जैसी पुस्तक बिना परमात्मा के अहैतुकी कृपा के लिखा जाना संभव नहीं था। कबीरजी जुलाहे के घर में पले-बढ़े और इतने महान बन गये। क्या बिना माँ के आशीर्वाद तथा प्रभु कृपा के यह सम्भव है? सूरदास जी ने सूरसाहित्य, सूरपदावली, सूरसागर जैसा साहित्य लिख दिया? क्या यह संभव है कि एक अंधे व्यक्ति के द्वारा बिना प्रभु कृपा के मानव प्रकृति और समाज का इतना जीवन्त चित्रण किया जा सकता है? गाँधी जी अपनी माँ पुतलीबाई की प्रेरणा से ही जीवन में साधारण व्यक्ति से एक महान व्यक्ति बने। अब्राहम लिंकन को जन्म देने वाली माँ धन्य है। वह मोची के लड़के थे और वह अमेरिका के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति बनें। मदर टेरेसा एक साधारण प्राइमरी टीचर थी और वह ममता-करूणा की संसार की ममता तथा करूणामय माँ बन गयीं। यह सब प्रभु कृपा की ही देन थी। हमारा मानना है कि प्रभु-कृपा तथा माँ के आशीर्वाद से असंभव काम भी संभव हो जाया करता है। वास्तव में शुद्ध आत्मा ही हमें प्रभु के समीप ले जाती है। साथ ही हमारे कर्म ही हमारे द्वारा कमाये गये पाप और पुण्य के साधन बनते हैं। इसलिए हमें अपने प्रत्येक कार्य को आत्मा से जोड़कर करना चाहिए।

(6) सृष्टि के आंरभ से माँ अनंत गुणों की भण्डार रही है :-  

                                सतयुग की बेला में जागने की शुरूआत हमें हर बच्चे को धरती का प्रकाश बनाने के विचार को हृदय से स्वीकार करके, अब एक पल की देर किये बिना, कर देनी चाहिए। एक बालिका को शिक्षित करने के मायने है पूरे परिवार को शिक्षित करना। सृष्टि के आंरभ से ही नारी अनंत गुणों की भण्डार रही है। पृथ्वी जैसी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र जैसी गंभीरता, चंद्रमा जैसी शीतलता, पर्वतों जैसा मानसिक उच्चता हमें एक साथ नारी हृदय में दृष्टिगोचर होती है। वह दया, करूणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और समय पड़ने पर प्रचंड चंडी का भी रूप धारण कर सकती है। वह मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री भी है। नर और नारी एक दूसरे के पूरक है। नर और नारी पक्षी के दो पंखों के समान हैं। दोनों पंखों के मजबूत होने से ही पक्षी आसमान में ऊँची उड़ान भर सकता है।

(7) नारी संसार के हर क्षेत्र को अपना नेतृत्व प्रदान करेंगी :-

                                नारी के चारों स्वरूप माँ, बहिन, पत्नी तथा बेटी को हृदय से पूरा सम्मान देकर ही विश्व को बचाया जा सकता है। संसार के लगभग दो अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य के संकल्प के साथ इस नये युग का विचार यह है कि हे प्रभु, यह वरदान दो कि हृदय की एकता का विचार सारी पृथ्वी पर छा जाये। धरती पर साम्राज्य परमेश्वर का हो यह विचार सभी समुदाय एवं विश्व के सभी राष्ट्रों के चिन्तन में आ जाये। आज नारी संसार के हर क्षेत्र को अपना नेतृत्व प्रदान कर रही है। नारी के त्याग, बलिदान तथा ममता के प्रति सच्चा सम्मान यह है कि हम जिस राष्ट्र में रहते हैं उस राष्ट्र के कानून का हमें सम्मान करना चाहिए। हमें अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक समस्याओं का समाधान आपसी परामर्श से न निकलने पर अंतिम आशा न्यायालय की शरण में जाने की समझदारी दिखाना चाहिए। वर्तमान नारी युग में लड़ाई-झगड़े तथा युद्धों का अब कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

(8) 21वीं सदी में सारे विश्व में नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की शुरूआत हो चुकी है :-

                हम यह पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि एक माँ शिक्षित या अशिक्षित हो सकती है, परन्तु वह एक अच्छी शिक्षक है जिससे बेहतर स्नेह और देखभाल करने का पाठ और किसी से नहीं सीखा जा सकता है। नारी के नेतृत्व में दुनिया से युद्धों की समाप्ति हो जायेगी। क्योंकि किसी भी महिला का कोमल हृदय एवं संवेदना युद्ध में एक-दूसरे का खून बहाने के पक्ष में कभी नही होता है। विश्व की आधी आबादी महिलाएं विश्व की रीढ़ हैं। सारे विश्व में आज महिलायें विज्ञान, अर्थव्यवस्था, प्रशासन, न्याय, मीडिया, राजनीति, अन्तरिक्ष, खेल, उद्योग, प्रबन्धन, कृषि, भूगर्भ विज्ञान, समाज सेवा, आध्यात्म, शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी, बैंकिग, सुरक्षा आदि सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों का बड़े ही बेहतर तथा योजनाबद्ध ढंग से नेतृत्व तथा निर्णय लेने की क्षमता से युक्त पदों पर आसीन हैं। 21वीं सदी में सारे विश्व में नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की शुरूआत हो चुकी है। हमारा मानना है कि महिलायें ही एक युद्धरहित एवं न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का गठन करेंगी। इसके लिए विश्व भर के पुरूष वर्ग के समर्थन एवं सहयोग का भी वसुधा को कुटुम्ब बनाने के अभियान में सर्वाधिक श्रेय होगा।

डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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