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वन विकास निगम में आयकर घोटाले की पुलिस जांच की सिफारिश

देहरादून : वन विकास निगम में 2.54 करोड़ रुपये के आयकर घोटाले की जांच अब पुलिस से कराई जाएगी। वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक एसटीएस लेप्चा ने इसकी संस्तुति मुख्य सचिव एस रामास्वामी को भेजी है। वन विभाग का दायित्व मुख्य सचिव के पास ही है।

आरटीआइ क्लब के महासचिव एएस धुन्ता की अपील पर सूचना आयोग ने वन निगम में गैर पंजीकृत वाहन स्वामियों से आयकर वसूली में बरती गई अनियमितता पर शासन को जांच करने के लिए कहा था। इसके बाद मामले में ऑडिट हुआ तो पता चला कि निगम अधिकारियों की मिलीभगत से गैर पंजीकृत वाहन स्वामियों से 2.59 करोड़ रुपये कम आयकर वसूल किया गया।

इसको लेकर दैनिक जागरण ने रविवार के अंक में प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी। खबर में बताया गया था कि किस तरह गैर पंजीकृत वाहन स्वामियों से भी 20 फीसद की जगह पंजीकृत वाहन स्वामियों की तरह 2.5 फीसद की दर से आयकर वसूला गया।

इसी तरह गैर पंजीकृत वाहनों को उप खनिज की निकासी में लगाया गया। इन वाहनों ने करीब सात लाख 88 हजार घन मीटर उप खनिज सामग्री ढोई। यदि इनका पंजीकरण कराया जाता तो प्रति वाहन 500 रुपये पंजीकरण शुल्क मिलता।

ऐसा न करने से निगम को 13.69 लाख रुपये की चपत लग गई। पंजीकरण न होने से स्टांप व नोटरी के रूप में प्रति वाहन 20 रुपये के हिसाब से 54 हजार 760 रुपये का राजस्व नुकसान सरकार को भी उठाना पड़ा। मामले का संज्ञान लेते हुए प्रबंध निदेशक ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर अवगत कराया कि गड़बड़झाले में कई विभागीय कार्मिकों की संलिप्तता हो सकती है। लिहाजा दोषी कार्मिकों के चिह्नीकरण के लिए विभागीय जांच से बेहतर पुलिस से जांच कराई जानी चाहिए। जिससे निष्पक्ष जांच होने के साथ दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पुलिस को अलग से शिकायत न भेजनी पड़े।

स्टांप मामले में मुकदमा अब तक नहीं

वन निगम में पंजीकरण के लिए वाहन स्वामियों को स्टांप पेपर पर शपथ पत्र देना होता है, जबकि 175 वहन स्वामियों ने बिना स्टांप पेपर के ही पंजीकरण करा दिया। इसके साथ स्टांप पेपर की भी नोटरी होनी चाहिए और 1662 मामलों में पंजीकरण बिना नोटरी के ही करा दिए गए। 101 मामलों में स्टांप पेपर के पीछे वाहन स्वामी की जगह किसी अन्य के नाम मिले।

398 स्टांप पेपर में वन निगम देहरादून लिखा था, जबकि इस पर पंजीकरण वाहन स्वामियों का किया गया। इन स्टांप पेपर को लेकर राज्य सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने पिछले साल तत्कालीन अपर जिलाधिकरी वित्त एवं राजस्व झरना कमठान को जांच के लिए कहा था। जांच रिपोर्ट में बताया गया कि विवादित स्टांप जारी करने वाले स्टांप विक्रेता चंद्र मोहन सिंह का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया है और स्टांप लिपिक को इस मामले में चंद्र मोहन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए कहा गया है।

हालांकि, यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि ये स्टांप वन निगम में किसके माध्यम से उपयोग में लाए गए। इस पर आयोग ने कलक्ट्रेट के लोक सूचनाधिकारी व कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक को स्पष्ट जांच कर रिपोर्ट तलब की थी। तब से अब तक न तो मुकदमा दर्ज हो पाया, न ही स्पष्ट जांच की जा सकी। हालांकि प्रबंध निदेशक की संस्तुति के बाद अब उम्मीद जगी है कि गड़बड़झाले की इस पूरी कड़ी का पर्दाफाश हो पाएगा।

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