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मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन किशोरियों और महिलाओं के सशक्तिकरण, स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए अहम है

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस एक ऐसा वैश्विक मंच है जो सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षित मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से गैर-लाभकारी संस्थाओं, सरकारी एजेंसियों, व्यक्तियों, निजी क्षेत्र और मीडिया की आवाजों और गतिविधियों को एक साथ जोड़ता है। हर साल 28 मई को मनाया जाने वाला यह दिवस मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में चुप्पी तोड़ने, जागरूकता फैलाने और इससे संबंधित नकारात्मक सामाजिक मानकों को बदलने का प्रयास करता है।

इस संदर्भ में, जल शक्ति मंत्रालय का पेयजल एवं स्वच्छता विभाग स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत सभी के लिए सुरक्षित सफाई एवं स्वच्छता की दिशा में अपने प्रयासों के एक हिस्से के रूप में सुरक्षित मासिक धर्म और सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित निपटान के बारे में जागरूकता फैलाकर मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2022 मनाएगा।

वर्ष 2022 में, मासिक धर्म स्वच्छता दिवस अपना ध्यान मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बरतने के बारे में बढ़ी हुई जागरूकता को समुचित कार्यरूप देने और उसे एक निवेश में बदलने पर केंद्रित करेगा ताकि हम सब मिलकर एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकें जहां कोई भी महिला या लड़की अपने मासिक धर्म के कारण पीछे न रहे।

यह सही है कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया है जो प्रजनन आयु (12 से 49) के दौरान दुनिया की आधी आबादी को प्रभावित करती है,  लेकिन यह शर्मिंदगी और शर्म का कारण बनी हुई है। साथ ही, मासिक धर्म की अशुद्धता को लेकर जेहन में गहरे बैठी कलंक की धारणा लैंगिक समानता में बाधा भी उत्पन्न करती है।

भारत में, बहुत बड़ी संख्या में लड़कियां मासिक धर्म शुरू होने पर हर साल स्कूल छोड़ देती हैं और मासिक धर्म के दौरान अनुपयुक्त स्वच्छता के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होती हैं। इसके अलावा, परिवारों में पीढ़ियों से चली आ रही पुरातन प्रथाएं लड़कियों को सामान्य गतिविधियों में भाग लेने से रोकती हैं।

महिलाओं, विशेष रूप से बालिकाओं, के सामने आने वाली ऐसी चुनौतियों को ध्यान रखते हुए मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) का संबंध सिर्फ स्वच्छता से नहीं है। यह बालिकाओं की गरिमा की रक्षा करते हुए उन्हें सुरक्षित रखने और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने का अवसर देने वाला जीवन प्रदान करते हुए लैंगिक रूप से संतुलित दुनिया के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

एसबीएम-जी में एमएचएम: इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देने के उद्देश्य से मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) को सरकार के प्रमुख कार्यक्रम- स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में शामिल किया गया है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में समग्र स्वच्छता कवरेज को बेहतर करने के अलावा, इस कदम का उद्देश्य महिलाओं व बच्चों की गरिमा को बढ़ावा देना और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सबंधी स्थायी लाभों को बनाए रखना है।

यह कदम घरों तथा स्कूलों में शौचालयों के निर्माण की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जोकि मासिक धर्म स्वच्छता का अभिन्न अंग है और मासिक धर्म के दौरान बरती जाने वाली स्वच्छता से संबंधित सुरक्षित आदतों को प्रोत्साहित करता है। यह कौशल विकास और स्कूलों एवं सार्वजनिक शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन डिस्पेंसर तथा भस्मक स्थापित करने का आह्वान भी करता है।

सभी किशोरियों एवं महिलाओं को सहयोग देने के लिए पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) द्वारा जारी किए गए एमएचएम संबंधी दिशानिर्देश राज्य सरकारों, जिला प्रशासन, इंजीनियरों तथा संबंधित विभागों के तकनीकी विशेषज्ञों के साथ-साथ स्कूल के प्रमुखों एवं शिक्षकों द्वारा किए जाने वाले कार्यों की विस्तृत जानकारी देते हैं।

ये दिशानिर्देश एमएचएम कार्यक्रम के उन आवश्यक तत्वों को रेखांकित करते हैं जिन्हें अन्य सरकारी योजनाओं के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। इन तत्वों में मासिक धर्म से संबंधित ज्ञान एवं सूचना; मासिक धर्म के दौरान उपयोग किए जाने वाले सुरक्षित अवशोषक; पानी, सफाई एवं स्वच्छता से संबंधित बुनियादी ढांचे और मासिक धर्म के दौरान प्रयुक्त अवशोषक के सुरक्षित निपटान की सुविधा तक पहुंच शामिल है। इससे किशोरियों एवं महिलाओं की गरिमा और किशोरियों की मासिक धर्म के दौरान स्कूल में बने रहने की संभावना में बढ़ोतरी होगी।

इसके अलावा, ये दिशानिर्देश समाज, समुदाय, परिवार और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने, लड़कियों एवं महिलाओं के लिए सूचित और प्रशिक्षित सहायता प्रदान करने की जरूरत और सहायक नीतियों, दिशानिर्देशों एवं व्यवहारों को महत्व दिए जाने का आह्वान करते हैं।

एनएफएचएस सर्वेक्षण: मासिक धर्म का असुरक्षित प्रबंधन लड़कियों को मासिक धर्म शुरू होने पर समय से पहले ही स्कूल छोड़ देने के लिए मजबूर करता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), जोकि भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा किया जाने वाला एक व्यापक सर्वेक्षण है, के अनुसार 15-24 वर्ष की आयु की केवल 77.3 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग करती हैं। हालांकि, शिक्षा मंत्रालय के अनुसार 2015-16 से लेकर 2020-21 के दौरान उच्च प्राथमिक स्तर पर पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने (ड्रॉप-आउट) की दर 4.61 प्रतिशत से घटकर 2.61 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर पर 16.89 प्रतिशत से घटकर 13.71 प्रतिशत हो गई है।

शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि 2020-21 में, कुल स्कूलों में से केवल 16.85 प्रतिशत स्कूलों में सैनिटरी कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए स्कूल परिसर के भीतर भस्मक की सुविधा है। इसके अलावा, मोबाइल ऐप के माध्यम से एसबीएम-जी चरण-II आईएमआईएस पर राज्यों द्वारा दर्ज किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 15,786 गांवों ने मासिक धर्म से संबंधित अवशोषकों (कपड़े के अलावा) की उपलब्धता/पहुंच सुनिश्चित की है और 13,684 गांवों ने भस्मक या गहरी दफन विधियों के माध्यम से गांव में मासिक धर्म से संबंधित अपशिष्ट (स्कूल स्तर पर 3,248 गांव, सामुदायिक स्तर पर 4,707 गांव) के सुरक्षित निपटान के प्रावधान किए हैं।

विभिन्न राज्यों में पहल: एसबीएम-जी कार्यक्रम के तहत मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता और कौशल बढ़ाने के लिए आईईसी घटक के तहत धन उपलब्ध है और स्वयं सहायता समूह ऐसे प्रयासों के प्रचार में मदद करते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, विभिन्न राज्यों ने ऐसे कार्यक्रम शुरू किए हैं जिन्होंने मासिक धर्म से जुड़े मिथकों एवं वर्जनाओं को दूर किया है, लड़कियों एवं महिलाओं को इसके बारे में बात करने और इससे जुड़े संदेहों को दूर करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

उदाहरण के लिए, झारखंड में विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के अवसर पर 28 मई, 2020 को रांची में मेन 4 मेंस्ट्रुएशन (M4M) अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य मासिक धर्म पर सामाजिक चुप्पी को तोड़ना और ‘मासिक धर्म से संबंधित अभाव’ (पीरियड पॉवर्टी) को दूर करना था। ‘मासिक धर्म से संबंधित अभाव’ (पीरियड पॉवर्टी) से तात्पर्य मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता उपकरणों और शिक्षा तक अपर्याप्त पहुंच से है। इनमें  सेनेटरी उत्पादों, धुलाई की सुविधाएं और अपशिष्ट का प्रबंधन शामिल हैं, लेकिन बात इन्हीं तक सीमित नहीं हैं।

मई 2021 में, यूनिसेफ महाराष्ट्र ने ‘इट्स टाइम फॉर एक्शन, लेट्स टॉक मेन्सट्रुएशन महाराष्ट्र’ नामक एक आईईसी अभियान आयोजित किया। इस अभियान के दौरान विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करके लोगों को मासिक धर्म के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इस अभियान के दौरान ‘पास द पैड’ नाम का एक दिलचस्प वीडियो प्रसारित किया गया जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग, पुरुष और महिलाएं सैनिटरी पैड के आसपास से गुजरते थे और इस विषय से संबंधित अवरोध को तोड़ने में मदद करते थे।

दूसरी ओर, 2020 में, छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में किशोरियों एवं महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने और उन्हें सस्ती एवं जैविक रूप से अपघटित हो जाने वाले (बायोडिग्रेडेबल) सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने के लिए यूनिसेफ के समर्थन से ‘पावना’ नामक एक परियोजना शुरू की। सुरक्षित और जैविक रूप से अपघटित हो जाने वाले (बायोडिग्रेडेबल) पैड की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को दो मशीनें प्रदान की गईं और उन्हें समुदायों की मांग को पूरा करने के लिए एक दिन में 30,000 पैड बनाने का अधिकार दिया गया। ‘लाल कपड़ा’ का एक सुरक्षित विकल्प पावना पैड्स कम कीमत वाले, जैविक रूप से अपघटित हो जाने वाले (बायोडिग्रेडेबल) और अच्छी गुणवत्ता वाले थे। अभी तक रायगढ़ के तीन गांव पावना पैड का उपयोग कर रहे हैं।

एसबीएम (जी) भी इस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में भस्मक की स्थापना में सहयोग कर रहा है। कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जिसने ऐसे भस्मक स्थापित किए हैं जो मासिक धर्म से संबंधित अपशिष्ट का कारगर तरीके से निपटान कर सकते हैं। इस प्रायोगिक परियोजना को पूरे कर्नाटक में 32 स्थानों-  छात्रावासों, स्कूलों और ग्राम पंचायतों (जीपी) में शुरू किया गया है। उनके तकनीकी और विश्लेषणात्मक प्रदर्शन की निगरानी के बाद, इसी किस्म के सैनिटरी नैपकिन के भस्मकों की संख्या और अधिक स्थानों पर बढ़ाई जाएगी।

इस बीच, महाराष्ट्र ने गढ़चिरौली जिले में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) के बारे में जागरूकता पैदा करने की दिशा में एक बड़ी पहल की है। यूनिसेफ के समर्थन से, महाराष्ट्र ने इस जिले में एक मूक क्रांति की शुरुआत की है जिसमें वे मासिक धर्म वाली लड़कियों और महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान कुर्मा घर या पीरियड हट में निर्वासित करने की क्रूर प्रथा को धीरे-धीरे समाप्त कर रहे हैं।

देश के अन्य हिस्सों में, मासिक धर्म कप, फिर से प्रयोग में लाए जा सकने वाले सैनिटरी पैड आदि जैसे उत्पादों के उपयोग के माध्यम से किशोरियों और महिलाओं को मासिक धर्म से संबंधित अपशिष्ट को कम करने के तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं।

आईईसी सामग्री: पेय जल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) ने विभिन्न आईईसी सामग्रियां भी तैयार की हैं जिनका उपयोग राज्य और जिले स्वास्थ्य एवं गरिमा के लिए  मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम); स्वस्थ मासिक धर्म के लिए सुरक्षित अवशोषक का उपयोग; सुरक्षित बुनियादी ढांचे (सुलभ शौचालय, पानी, ढके हुए डिब्बे) के महत्व; मासिक धर्म से संबंधित अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के तरीके; स्वच्छ मासिक धर्म के लिए स्वस्थ व्यवहार (पोषण संबंधी जरूरतें, स्वस्थ आदतें और स्कूल या काम पर जाने से संबंधित वर्जनाएं, रसोई में जाने या कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करना और धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना); तथा मासिक धर्म एक बीमारी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक जैविक घटना है के बारे में समुदाय को शिक्षित करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए कर सकते हैं। विभाग ने मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) को बढ़ावा देने के लिए यूनिसेफ के समर्थन से पुस्तिकाएं भी तैयार की है।

एमएचएम से संबंधित गतिविधियों के लिए वित्त पोषण: एसबीएम ग्रामीण चरण 2 ने आईईसी उद्देश्यों के लिए धनराशि निर्धारित की है, जिसका उपयोग मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए किया जा रहा है। इस धनराशि का उपयोग राज्य, जिला, ग्राम पंचायत और ग्राम स्तर पर मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) संबंधी संचार एवं क्षमता निर्माण से जुड़ी गतिविधियों को सहायता प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।

इसके अलावा, स्वच्छता से संबंधित 15वें वित्त आयोग के अनुदान का उपयोग करके ग्राम पंचायत स्तर पर भस्मीकरण आदि सहित मासिक धर्म से संबंधित अपशिष्ट के निपटान को आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है। यही नहीं, जारी की गई एक संयुक्त परामर्शी के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के तहत वित्त पोषण का उपयोग स्कूलों के लिए सेनेटरी वेंडिंग मशीनों और भस्मक की खरीद के लिए किया जा सकता है।

आगे की राह: विभिन्न राज्यों में हो रही गतिविधियों को देखते हुए, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मासिक धर्म का विषय अब उतना वर्जित नहीं है और ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने दिनों की तुलना में इस पर कहीं अधिक खुलकर बात की जाती है। महिलाओं एवं लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के महत्व के बारे में पता है और सैनिटरी पैड तक जिन महिलाओं की पहुंच है, वे इसका इस्तेमाल कर रही हैं। वे पूजा स्थल या रसोई आदि में प्रवेश करने से परहेज करने के लिए कहे जाने पर प्राचीन प्रथाओं को लेकर सवाल उठा रही हैं। कुछ स्कूलों में भस्मक लगाए जा रहे हैं। लेकिन इस सुविधा को देश भर में सभी घरों और स्कूलों में विस्तारित करने की जरूरत है। महिलाओं एवं लड़कियों को उनकी पूरी क्षमता का इस्तेमाल में मदद करने के लिए और अधिक काम करने की जरूरत है और इस लक्ष्य को प्रभावी मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) सुनिश्चित कर सकता है।

इन सबसे ऊपर, मासिक धर्म के विषय पर चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है। इससे जुड़ी बातचीत में पुरुषों को भी शामिल करने की जरूरत है। मासिक धर्म के बारे में चर्चा के दौरान उन्हें शिक्षित करने और सहज बनाने की जरूरत है ताकि वे इससे जुड़े कलंक को समाप्त कर सकें। लड़कियों एवं महिलाओं को अब मासिक धर्म के बारे में बात करने और अपनी शंकाओं को दूर करने में शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी चाहिए। अगर हम लड़कियों को उनकी पूरी क्षमता से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं, तो हम अपने देश के विकास को आधा कर देंगे।

– श्री अरुण बरोका, विशेष सचिव पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय’

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