राजनीति

सपा व बसपा के बिखराव का भाजपा और कांग्रेस को फायदा

देहरादून, : प्रदेश में अब राजनीति कांग्रेस व भाजपा के बीच ही सिमटती नजर आ रही है। प्रदेश में कभी तीसरी ताकत के रूप में उभर रही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बिखराव का फायदा भी दोनों दलों को ही मिला है। अब विभिन्न कार्यक्रम व सदस्यता अभियान के जरिये बसपा व सपा की विचारधारा से जुड़े लोगों को अपने पाले में लाने की तैयारी चल रही है।

राज्य गठन के बाद प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस के अलावा बहुजन समाज पार्टी ने अपनी दमदार उपस्थिति का अहसास कराया था। राज्य में वर्ष 2002 में हुए पहले चुनाव में तमाम अनुमानों को दरकिनार करते हुए बसपा ने सात सीट और फिर 2007 में आठ सीटों पर कब्जा किया था।

विशेष यह कि इसने गढ़वाल मंडल के साथ ही कुमाऊं मंडल के मैदानी जिलों में गहरी पकड़ का अहसास कराया था। इसके बाद बसपा में सत्ता संघर्ष नजर आया। नतीजा यह हुआ कि बसपा के टिकट पर जीते नेताओं ने कांग्रेस व भाजपा का दामन थामना शुरू कर दिया।

यही कारण भी रहा कि वर्ष 2012 में बसपा को केवल तीन सीटें ही मिली। कुछ समय बाद बसपा के दो विधायकों ने कांग्रेस से नजदीकी बना ली थी, जिस कारण इन्हें बसपा ने दल से निलंबित कर दिया।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई। इसका नतीजा यह हुआ कि दल के अधिकांश पदाधिकारियों ने भाजपा व कांग्रेस का दामन थामना शुरू कर दिया। इस कारण बसपा ने कई पदाधिकारियों को दल से बाहर का रास्ता भी दिखाया है।

वहीं, समाज वादी पार्टी ने प्रदेश में हुए पहले लोकसभा चुनाव में हरिद्वार से जीत दर्ज कर अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। हालांकि, इसके बाद प्रदेश के आला नेताओं के बीच हुए सत्ता संघर्ष के चलते पार्टी हाशिये पर चली गई।

सपा के भी अब अधिकांश नेता कांग्रेस व भाजपा के साथ जुड़ चुके हैं। प्रदेश में एकमात्र क्षेत्रीय दल के रूप में उभरे उक्रांद को भी जनता पूरी तरह नकार चुकी है। ऐसे में अब प्रदेश की राजनीति कांग्रेस व भाजपा के बीच ही सिमटती जा रही है।

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