सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, गंगा से खनन पर रोक को हटाया
देहरादून, : पांच माह से गंगा और गंगा के किनारे खनन पर लगी रोक शुक्रवार को हट गई। नैनीताल हाईकोर्ट के खनन पर रोक के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। इस मामले में राज्य सरकार ने बाढ़ के खतरे, राजस्व की हानि और लोगों को हो रही परेशानी को आधार बनाया था।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने पांच दिसंबर को देहरादून निवासी सलीम की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान गंगा किनारे खनन पर रोक लगाने के आदेश जारी किए थे। सलीम ने उत्तर प्रदेश से परिसंपत्तियों के बंटवारे और शक्ति नहर के आसपास हुए अवैध कब्जों को लेकर याचिका दायर की थी।
गंगा किनारे खनन पर पूरी तरह रोक के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट के आदेश को रद करने की मांग की थी। राज्य सरकार का तर्क था कि इससे सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही खनन बंद होने से निर्माण कार्य ठप हैं।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपील में कहा कि हाई कोर्ट ने जो आदेश दिया है, उसकी जनहित याचिका में मांग भी नहीं की गई थी। जनहित याचिका सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे और निर्माण हटाने को लेकर दाखिल की गई थी। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया गया कि गंगा में खनन पर रोक का आदेश देने से पहले वैध लाइसेंसधारी पक्षकारों को सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।
राज्य सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च और मई, 2016 में उत्तराखंड वन निगम को गंगा में खनन गतिविधि चलाने के लिए पर्यावरण मंजूरी दी थी। हाई कोर्ट के समक्ष माइनर मिनरल कानून के उल्लंघन की कोई शिकायत भी नहीं थी। ऐसे में हाई कोर्ट का खनन पर रोक लगाने के आदेश पर रोक लगाई जाए।
सचिव खनन शैलेश बगोली ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने गंगा किनारे खनन पर लगी रोक के आदेश पर स्टे दे दिया है। इससे राज्य को बड़ी राहत मिली। उन्होंने कहा कि राजस्व हानि के साथ ही वैध खनन नहीं होने से निर्माण कार्यों के लिए लोगों उप खनिज की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं, खनन नहीं होने से मानसून में बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि वन विकास निगम के माध्यम से गंगा में खनन किया जा रहा है, पूरी तरह वैध और पर्यावरणीय अनुमति के आधार पर किया जा रहा है।