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IPO आने के बाद कंपनियों पर लगेंगी नई पाबंदी, Sebi ने किया प्रस्‍ताव

बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने IPO के नियमों में बड़ा रद्दोबदल किया है। बाजार नियामक ने प्रस्ताव किया कि कंपनियां कैसे IPO से आई नकदी खर्च कर सकती हैं और बड़े निवेशक कितनी जल्दी बाहर निकल सकते हैं। सेबी का मकसद इस प्रस्‍ताव के जरिए छोटे यानि रिटेल निवेशकों का हित सुरक्षित करना है।

मंगलवार देर रात प्रकाशित प्रस्‍ताव के अनुसार, बोर्ड ने अधिग्रहण और रणनीतिक निवेश के लिए अधिकतम 35% आय को सीमित करने का प्रस्ताव किया है। Sebi ने एंकर निवेशकों के लिए लंबे समय तक लॉक-इन करने का भी प्रस्ताव रखा ताकि लिस्टिंग के बाद त्वरित निकासी को रोका जा सके।

Bloomberg की रिपोर्ट के मुताबिक अगस्‍त में Sebi ने प्रवर्तकों के निवेश के लिए IPO के बाद न्यूनतम लॉक-इन अवधि को कुछ शर्तों के साथ 3 साल से घटाकर 18 महीने कर दिया था। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया जब कई कंपनियां शेयर बाजारों में सूचीबद्ध हो रही हैं। इसके अलावा सेबी ने समूह कंपनियों के लिए प्रकटीकरण संबंधित जरूरतों को भी सुव्यवस्थित किया है।

सेबी की अधिसूचना में कहा गया था कि अगर इश्यू का मकसद किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय का वित्तपोषण को छोड़ कुछ और है या बिक्री पेशकश है, तो प्रवर्तकों की कम से कम 20 प्रतिशत हिस्सेदारी 18 महीने के लिए लॉक-इन होगी। फिलहाल यह लॉक-इन अवधि 3 साल है। पूंजीगत व्यय में अन्य के साथ सिविल कार्य, विविध अचल संपत्तियां, भूमि की खरीद, भवन, संयंत्र और मशीनरी आदि शामिल हैं।

प्रवर्तकों की न्यूनतम 20 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी के लिए लॉक-इन अवधि को भी मौजूदा 1 साल से घटाकर 6 महीने कर दिया गया है। नियामक ने इसके साथ ही प्रवर्तकों के अलावा अन्य व्यक्तियों द्वारा आईपीओ से पूर्व प्राप्त प्रतिभूतियों के लिये भी लॉक इन अवधि को आवंटन की सीमा से छह माह कर दिया है। वर्तमान में यह अवधि 1 साल है। इसके अलावा नियामक ने आईपीओ के समय खुलासा आवश्यकताओं को भी कम कर दिया है।

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