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कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने भारत में कृषि सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए

नई दिल्लीः फरवरी, 2004 में राष्‍ट्रीय किसान आयोग गठित की गई। उसके बाद देश में आयोग के सिफारिशों के आधार पर किसानों के लिए राष्‍ट्रीय नीति मंजूर की गई, जिसका उद्देश्‍य कृषि क्षेत्र की आर्थिक स्‍थिति में सुधार लाने के साथ-साथ किसानों की निवल आय में भी वृद्धि किया जाना था।

यूपीए सरकार में अधिकतर सिफारिशें ठंडे बस्‍ते में छोड़ दी गईं। मोदी सरकार आते ही इन पहलों को तेज करने के लिए वर्ष 2016 में किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक अंतर मंत्रालय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने उसका अध्‍ययन करते हुए माननीय प्रधानमंत्री जी के निर्देशन में इस कार्य को  तेज करने का काम प्रारम्‍भ किया जो निम्‍नवत है –

(क)  Model Agricultural Land Leasing Act, 2016 राज्‍यों को जारी किया, जो कृषि सुधारों के संदर्भ में अत्‍यंत ही महत्‍वपूर्ण कदम है जिसके माध्‍यम से न सिर्फ भू-धारकों वरन लीज प्राप्‍तकर्ता की जरूरतों का भी ख्‍याल रखा गया है।

इस एक्‍ट के माध्‍यम से भू-धारक वैधानिक रूप से कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के लिए आपसी सहमति से भूमि लीज पर दे सकते हैं। यहां यह भी ध्‍यान रखा गया है कि किसी भी परिस्‍थिति में लीज प्राप्‍तकर्ता का कृषि भूमि पर कोई दावा मान्‍य नहीं होगा।

लीज प्राप्‍तकर्ता के दृष्‍टिकोण से यह ध्‍यान दिया गया है कि उसे संस्‍थागत ऋण, इंश्‍योरेंस तथा आपदा राहत राशि उपलब्‍ध हों, जिससे उनके द्वारा अधिक-से-अधिक कृषि पर निवेश हो सके।

(ख)  अप्रैल, 2016 में ही राष्‍ट्रीय कृषि मंडी स्‍कीम (ई-नाम) के तहत बेहतर मूल्‍य  खोज सुनिश्‍चित करके, पारदर्शिता और प्रतियोगिता लाकर कृषि मंडियों में क्रांति लाने की एक नवाचारी मंडी प्रक्रिया प्रारम्‍भ की गई।

(ग)  मॉडल “कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2017” राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों द्वारा अपनाने हेतु 24 अप्रैल, 2017 को जारी किया गया है। जिससे ई-व्‍यापार, सब-यार्ड के रूप में गोदामों, सिल्‍लोज, शीत भंडारण की घोषणा, मंडी शुल्‍क एवं कमीशन प्रभार को तर्कसंगत बनाना तथा कृषि क्षेत्र में निजी मंडी जैसे सुधार शामिल हैं।

वर्ष 2018 में देश के 22,000 ग्रामीण कृषि मंडियों के विकास के लिए नाबार्ड के माध्‍यम से दो हजार करोड़ की राशि भी प्रस्‍तावित की गई है।

यहां स्‍पष्‍ट है कि राष्‍ट्रीय कृषि बाजार के संबंध में वर्ष 2004 के बाद दिए गए आयोग के सुझाव का क्रियान्‍वयन भी इसी 4 साल के अंदर किया गया।

(घ)  सरकार ने पुरानी योजनाओं के विस्‍तृत अध्‍ययन के बाद उनमें सुधार किया है तथा विश्‍व की सबसे बड़ी किसान अनुकूल फसल बीमा योजना अर्थात प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना तथा मौसम आधारित फसल बीमा योजना को शुरू किया है। वर्ष 2019-20 तक सकल फसलित क्षेत्र के 50 प्रतिशत को कवर किए जाने का लक्ष्‍य है।

(ड.)  सूक्ष्‍म सिंचाई को अपनाने में पर्याप्‍त वृद्धि दर्ज की गई है। सूक्ष्‍म सिंचाई (एमआई) कवरेज की चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर 15 प्रतिशत है। वर्ष 2017-18 के दौरान, लगभग 9.26 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र को एमआई के तहत लाया गया है, जो कि एक कैलेंडर वर्ष में प्राप्‍त अब तक का अधिकतम कवरेज है। वर्ष 2022-23 तक 1.5 से 2 मिलियन हेक्‍टेयर प्रतिवर्ष कवर करने का लक्ष्‍य है। बजटीय आवंटन में वृद्धि के साथ-साथ 5,000 करोड़ का कॉर्पस फण्‍ड भी स्‍थापित किया गया है।

(च)  किसानों की आय में वृद्धि करने तथा जलवायु सह्यता प्राप्‍त करने के लिए कृषि वानिकी उपमिशन-राष्‍ट्रीय कृषि-वानिकी नीति तैयार की गई है। वर्ष 2016-17 के दौरान “हर मेढ़ प्रति पेड़” के उद्देश्‍य से एक विशेष स्‍कीम “कृषि वानिकी उपमिश्‍न” शुरू तथा संचालित किया गया था। कृषि वानिकी उप-मिशन के तहत सहायता के लिए पारगमन विनियमों में छूट एक पूर्व अपेक्षा है। 21 राज्‍यों (वर्ष 2016-17 में 8 राज्‍य तथा वर्ष 2017-18 में 12 राज्‍य) ने इस विनियम में छूट प्रदान कर दी है तथा सभी राज्‍यों को इस दिशा में प्रेरित किया जा रहा है।

(छ)  पुनर्गठित राष्‍ट्रीय बांस मिशन-राष्‍ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) प्रारंभिक रूप से वर्ष 2006-07 में केन्‍द्रीय प्रायोजित स्‍कीम के रूप में शुरू किया गया था तथा वर्ष 2014-15 के दौरान इसे समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के तहत लाया गया था तथा वर्ष 2015-16 तक जारी रखा गया था।

यह योजना मुख्‍यत: सीमित मौसम और शोधन ईकाईयों तथा बांस बाजार के कारण बांस की खेती और प्रचार-प्रसार तक ही सीमित है। इस योजना की मुख्‍य कमियां उत्‍पादकों (किसानों) और उद्योगों के बीच संपर्क का अभाव था।

भारतीय वन अधिनियम, 1927 में पिछले वर्ष संशोधन किया गया था जिससे वन क्षेत्र के बाहर बोये गए बांस को ‘पेड़ों’ की परिभाषा से हटा दिया गया है तथा 1,290 करोड़ रूपए की परिव्‍यय से पुनर्गठित राष्‍ट्रीय बांस मिशन का क्रियान्‍वयन भी किया जा रहा है।

(ज)  सरकार ने 12 मानदंडों के अनुसार परिक्षित मृदा नमूनों के आधार पर किसानों को भूमि की उर्वरता के बारे में सूचना प्रदान करने के लिए विश्‍व में सबसे बड़ा यूनिवर्सल मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड योजना प्रारंभ की है।

एक अध्‍ययन यह दर्शाता है कि मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड के सिफारिशों के अनुसार उर्वरक एवं सूक्ष्‍म पोषक तत्‍वों के अनुप्रयोग के परिणामस्‍वरूप 8 से 10 प्रतिशत के बीच रासायनिक उर्वरक अनुप्रयोग की कमी पाई गई है और फसल पैदावार में 5-6 प्रतिशत तक की समग्र वृद्धि हुई है।

(झ)  परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)- पीकेवीवाई को देश में जैविक खेती को प्रोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से कार्यान्‍वित किया जा रहा है। यह मृदा स्‍वास्‍थ्‍य एवं जैविक पदार्थ सामग्री में सुधार लाएगा तथा किसानों की निवल आय में बढ़ोत्‍तरी होगी ताकि प्रीमियम मूल्‍यों की पहचान किया जा सके। लक्षित 50 एकड़ (2015-16 से 2017-18) तक की प्रगति संतोषजनक है। अब इसे कलस्‍टर आधार (लगभग प्रति 1000 हैक्‍टेयर) पर शुरू किया गया है।

यहां उल्‍लेखनीय है कि सतत् कृषि को बढ़ावा देने के लिए जैविक खेती की सिफारिश पर भी मोदी सरकार के समय ही संस्‍थागत एवं व्‍यवस्‍थित रूप से कार्यांवित किया गया।

(ञ)  पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्‍य श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर) देश के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में जैविक खेती की क्षमता को पहचान कर केंद्रीय क्षेत्र योजना शुरू की गई है। पूर्वोत्‍तर को भारत के जैविक केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।

(ट)  मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में Model Contract Farming and Services Act, 2018 जारी किया है जिसमें पहली बार देश की अन्‍नदाता किसानों तथा कृषि आधारित उद्योगों को जोड़ा गया है। इस एक्‍ट के माध्‍यम से जहां एक तरु कृषि जिंसों का अच्‍छा दाम किसानों को मिल सकेगा, वहीं फसल कटाई उपरांत नुकसानों को भी कम किया जा सकेगा। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी पैदा हो सकेंगे। इसके माध्‍यम से एफपीआ/एफपीसी को बढ़ावा दिया जाएगा।

(ठ)  वर्ष 2003-05 के बीच में इस देश के वैज्ञानिकों ने यूरिया को शतप्रतिशत नीम कोटेड  करने की बात कही थी, वह भी ठंडे बस्‍ते में पड़ा हुआ था जिसे मोदी सरकार के आने के बाद दो वर्षों में पूरा किया गया।

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