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फिटनेस टेस्ट में फेल हुई उत्‍तराखंड परिवहन निगम की ‘फिट’ बसें

देहरादून : उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों में अगर आप सफर कर रहे हैं तो संभलकर रहें। कहीं ऐसा न हो कि चलती बस का स्टेयरिंग जाम हो जाए या फिर कमानी टूट जाए। ये आशंका भी है कि कहीं बस के ब्रेक फेल न हो जाएं। परिवहन निगम की 278 बसें अपनी मियाद पूरी कर चुकी हैं, मगर फिर भी इन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है।

बस चालक लगातार शिकायतें कर रहे, लेकिन निगम प्रबंधन को इसकी कोई परवाह नहीं। इसका खुलासा आरटीओ की फिटनेस जांच में भी हुआ। पिछले दो माह में देहरादून और हरिद्वार डिपो की 23 बसों को अनफिट करार दिया गया, जो रोडवेज कार्यशाला से फिट करार दी गई थी। बसों को फिटनेस प्रमाण-पत्र देने से आरटीओ सुधांशु गर्ग ने इंकार कर दिया है।

परिवहन निगम के नियमानुसार एक बस अधिकतम आठ साल अथवा आठ लाख किलोमीटर तक चल सकती है। इसके बाद बस की नीलामी का प्रावधान है, मगर यहां ऐसा नहीं हो रहा। परिवहन निगम के पास 1327 बसों का बेड़ा है। इनमें साधारण व हाईटेक बसों के अलावा 200 वाल्वो और एसी बसें भी शामिल हैं। 200 में से 180 एसी और वाल्वो बसें अनुबंध पर हैं। बेड़े की तकरीबन 900 बसें ऑनरोड रहती हैं, जबकि बाकी विभिन्न कारणों से वर्कशॉप में।

ऑनरोड और ऑफरोड बसों में 278 कंडम हो चुकी हैं। नियमानुसार इन बसों की नीलामी हो जानी चाहिए थी पर निगम इन्हें दौड़ाए जा रहा है। नतीजा, बीच रास्ते में बसें खराब हो जाती हैं या दुर्घटना का शिकार बन जाती हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जब बसों के स्टेयरिंग निकल गए या ब्रेक फेल हो गए। पिथौरागढ़ में दो वर्ष पूर्व 20 जून को हुआ हादसा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

आयु सीमा पूरी कर चुकी बस दुर्घटना का शिकार बनी व चालक समेत 14 यात्री काल के गाल में समा गए। बसों में ईंधन पंप खराब होने व कमानी टूटने के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं। कंडम बसों में देहरादून मंडल में 109, काठगोदाम में 76 व टनकपुर में 67 बसें शामिल हैं।

मैकेनिक की कमी 

परिवहन निगम के पास तकनीकी स्टाफ की कमी है। उत्तर प्रदेश से पृथक होने के बाद आधे से ज्यादा नियमित कर्मी रिटायर हो चुके हैं। नई भर्ती हुई नहीं। कार्यशाला में एजेंसी कर्मियों से काम चलाया जा रहा है। उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन के प्रांतीय महामंत्री अशोक चौधरी का कहना है कि नई बसें आ चुकी हैं। ऐसे में कंडम बसों को रूट पर नहीं भेजा जाना चाहिए।

एसी बसों का भी बुरा हाल

एसी बसों में सुहाने-आरामदायक सफर का दावा करने वाला परिवहन निगम भले ही यात्रियों से भारी-भरकम किराया वसूल रहा हो, लेकिन सफर में न तो आराम है न ही सुकून। हालत ये है कि 50 फीसद एसी बसों में एसी खराब पड़े हैं और सीटें टूटी हुई हैं। आधी बसों में सीटों के पुश-बैक काम नहीं करते तो कुछ से गद्दियां गायब हैं। बसों में सीट के ऊपर लगे ब्लोवर तक टूटे पड़े हैं और मोबाइल चार्जर के सॉकेट काम नहीं कर रहे। पानी की बोतल रखने के क्लैंप गायब हैं और पंखे भी चालू नहीं हैं। बसें अनुबंधित हैं, फिर भी निगम इनसे संबंधित कंपनी पर कार्रवाई नहीं करता।

आरटीओ सुधांशु गर्ग का कहना है कि कार्यशाला के फोरमैन ने जिन बसों को फिट करार दिया था, उनमें कमानी के फट्टे खराब निकले। कुछ के स्टेयरिंग में भी खराबी थी। ऐसे बस कभी भी हादसे का शिकार हो सकती है। इस परिस्थिति में फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं दिया जाएगा।

महाप्रबंधक (उत्तराखंड परिवहन निगम) दीपक जैन का कहना है कि जो बसें कंडम हो चुकी हैं, उन्हें रूट पर नहीं भेजा जा रहा। उनकी नीलामी होने वाली है। अब नई बसें आ चुकी हैं। उन्हें ही रूट पर भेजा जा रहा। जिन पुरानी बसों को फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं मिला है उन्हें दुरुस्त कराया जा रहा।

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