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यूक्रेन से लौटे जिगर के टुकड़े को देख भावुक हुए माता-पिता

यूक्रेन से सकुशल लौटने पर छात्रों के माता-पाता ने दिल्ली एयरपोर्ट पर स्वागत किया। इस दौरान बच्चों के माता-पिता की आंखें नम थीं। वहीं, अपने जिगर के टुकड़े को देख काफी खुश हो रहे थे। रविवार को तीसरी फ्लाइट यूक्रेन से दिल्ली आई।

वहीं, दूसरी ओर वो माता-पिता चिंतित हैं, जिनके बच्चे अभी भी वहां फंसे हुए हैं। उनकी रातों की नींद हराम हो रही है। उनके बच्चे सायरन बजने पर खुद को बंकरों में छिपा हुआ पाते हैं।

यूक्रेन से दिल्ली पहुंचे तो यूपी भवन में बातचीत करते हुए इमरान अली भावुक हो गए। खुद को संभालते हुए इमरान बोले अभी परिजनों से तो नहीं मिला, लेकिन लगता है कि घर आ गया हूं। सरकार ने यूक्रेन से हमें लाने में बड़ी मदद की, एयर पोर्ट से यूपी भवन मेहमान बनाकर ले आई, यहां के अधिकारियों ने बड़े प्यार से हाल-चाल पूछा, नहाने-खाने का बंदोबस्त किया और अब सरकारी कार में बैठाकर घर भेजा है।
इमरान यूक्रेन में चार दिन पहले के उस भयावह मंजर को याद करते हैं। 24 फरवरी को सुबह चार बजे अचानक उनकी आंख खुली तो उन्हें जोर-जोर से आपातकालीन अलार्म बजता सुनाई पड़ा। उन्होंने फोन के जरिए अपने हॉस्टल में लगातार अलार्म बजने की वजह जानी, तो उन्हें बताया गया कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है। हकीकत जानने के बाद उनके अगले चार दिन उलझन में गुजारे। उन्हें और वहां सभी को यही डर सता रहा था कि कहीं उनके ऊपर भी बम न गिर जाए। इमरान बमबारी वाली जगह से करीब 700 किलोमीटर दूर वेस्ट यूक्रेन में थे। वो उजहोरोद नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करते हैं। उन्होंने बताया कि यह यूक्रेन का सबसे शांत इलाका है। क्योंकि यह यूक्रेन का यूरोप से सटा इलाका है। यहां से स्लोवाकिया, पोलैंड और हंगरी आधे घंटे में पहुंचा जा सकता है।
जेब में नहीं थे पैसे, मेरा देश मुझे यूक्रेन से वापस लाया
यूक्रेन से रविवार को वतन लौटने वाले 240 छात्रों में गाजियाबाद के देवेश कौशिक भी थे। यूपी भवन में वह उत्तर प्रदेश के 37 छात्रों के साथ मौजूद थे। उन्होंने बताया कि रूस से युद्ध शुरू होते ही यूक्रेन के बैंक बंद हो गए। उनके पास उस वक्त पैसे खत्म हो गए थे, जबकि यूक्रेन की प्रिवत बैंक के उनके खाते में 750 डॉलर जमा थे, लेकिन उसे वह निकाल नहीं पा रहे थे। यूक्रेन के जकरपातिया स्टेट में वह थे, जो यूक्रेन का शांत इलाका माना जाता है।

परिजनों ने ली राहत की सांस
लेकिन युद्ध शुरू होते ही यह अशांत हो गया था। लेकिन 25 फरवरी को भारतीय दूतावास के कॉन्ट्रैक्टर से उनकी मुलाकात हुई, जिसने उनको बस के जरिए हंगरी की सीमा में पहुंचा दिया। इसके बाद भारतीय दूतावास की निगरानी में करीब 400 किलोमीटर की बस यात्रा कर वह बुडापेस्ट हवाई अड्डे पहुंचे, जहां वह बाकी भारतीय साथियों के साथ अपने वतन लौट पाए। घर पहुंचने पर उन्हें और उनके परिजनों ने राहत की सांस ली। पिछले चार दिन से परिवार के सदस्यों का मन देवेश के सकुशल घर लौटने पर टिका हुआ था। देवेश कौशिक ने बताया कि वह 26 नवंबर 2021 को यूक्रेन पढ़ाई करने के लिए गए थे। वह अभी प्रथम वर्ष के छात्र हैं। यूक्रेन के हालात सुधरेंगे तो वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए फिर से यूक्रेन जाएंगे।

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