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वह एक समाज सुधारक थे और धार्मिक हठधर्मिता के खिलाफ थे: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत की अमूल्य धरोहर को संरक्षित करना ही सच्चा राष्ट्रवाद है और इस अभूतपूर्व परिवर्तन के साक्षी विश्व को भारत आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है। उन्होंने कहा कि भारत ही कड़वाहट से भरी वर्तमान दुनिया को विभिन्न फूलों से एकत्रित ज्ञान रूपी शहद प्रदान कर सकता है।

स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में हैदराबाद के स्वर्ण भारत ट्रस्ट में आयोजित राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर युवाओं से वार्तालाप करते हुए श्री नायडू ने कहा कि वह चाहते कि युवा स्वस्थ्य, आत्मजागृत और विश्वास से परिपूर्ण हो। उन्होंने युवा पीढ़ी के लिए स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं की आवश्यकता पर जोऱ देते हुए कहा कि इनके माध्यम से युवा भारत की महान और समृद्ध संस्कृतिक और आध्यात्मिकता विरासत का अनुभव कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद एक समाज सुधारक थे और वह धार्मिक हठधर्मिता के खिलाफ थे।

युवाओं के लिए सदैव प्रासंगिक रहने वाली स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं की चर्चा करते हुए श्री नायडू ने स्वामी विवेकानंद के शब्दों को स्मरण किया। श्री नायडू ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था “मुझे 100 ऊर्जावान युवक दीजिए और मैं भारत को बदल दूंगा”। श्री नायडू ने कहा कि युवाओं को स्वामी विवेकानंद के बताए मार्ग पर चलते हुए देश के लिए त्याग और सेवा के नियमों का पालन करना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद को हिंदू संस्कृति की अभिव्यक्ति बताते हुए,  उपराष्ट्रपति ने कहा कि 125 वर्ष पूर्व विश्व धर्म संसद में उनका संबोधन एक महत्वपूर्ण घटना थी और पश्चिम में हिंदू धर्म को प्रस्तुत करने में उन्होंने एक प्रमुख भूमिका निभाई। श्री नायडू ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण ने भारतीय संस्कृति और इसकी शाश्वत प्रासंगिकता के कालातीत मूल्यों को समझाया।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान समय में किसी भी अन्य समय की तुलना में धार्मिक  कट्टरता, जाति या क्षेत्र के नाम पर लोगों के बीच मतभेद पैदा करने वाली दीवारों को गिराने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों के लोगों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और धार्मिक विविधता के उत्सव के लिए धार्मिक सहिष्णुता सर्वोपरि है।

श्री नायडू ने कहा कि स्वामी जी ने जनता और गरीबों को शिक्षित करने एवं उन्हें सशक्त बनाने के लिए शिक्षा को एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में अपनाया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के शब्दों का उदाहरण देते हुए कहा “अगर गरीब छात्रा शिक्षा के लिए नहीं आ सकता है, तो शिक्षा को उसके पास जाना चाहिए”। उन्होंने युवाओं से एक मजबूत भारत के निर्माण के लिए अथक प्रयास करने का भी आग्रह किया। अपने संबोधन से पूर्व, श्री नायडू ने स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।

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