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धर्मेंद्र प्रधान ने विद्यार्थियों को भावी उद्यमियों के रूप में विकसित करने का आह्वान किया

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के निदेशकों का दो- दिवसीय सम्मेलन आज संपन्न हुआ। राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 7 जून, 2022 को इस सम्मेलन का उद्घाटन किया था।

इस सम्मेलन में केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान, शिक्षा राज्यमंत्री श्री सुभाष सरकार, प्रधानमंत्री के सलाहकार श्री अमित खरे, उच्च शिक्षा सचिव श्री संजय मूर्ति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष, एआईसीटीई के अध्यक्ष, एनसीवीईटी के अध्यक्ष, विभिन्न केन्द्रीय विश्वविद्यालयों / उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों और शिक्षा मंत्रालय एवं राष्ट्रपति सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।

अपने समापन भाषण में, श्री प्रधान ने विजिटर्स कॉन्फ्रेंस में भाग लेने और मार्गदर्शन देने के लिए राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वृद्धिशील परिवर्तन का युग अब बीत चुका है। उन्होंने उच्च शिक्षण संस्थानों से भविष्य की जरूरतों के अनुरूप श्रमशक्ति के निर्माण की दिशा में अनुकरणीय वृद्धि को लक्षित करने का आह्वान किया। तकनीक द्वारा संचालित नई दुनिया में आने वाली चुनौतियों और अवसरों के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि भारत ने यूपीआई, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, आधार जैसी विभिन्न पहलों के माध्यम से अपना तकनीकी कौशल दिखाया है। हमें अपनी इसी ताकत को और बढ़ाते हुए औद्योगिक क्रांति 4.0 से उत्पन्न परिवर्तनों को स्वीकार करके भविष्य की जरूरतों के अनुरूप श्रमशक्ति का निर्माण करना चाहिए। उद्यमशीलता के बारे में बोलते हुए, उन्होंने देश में यूनिकॉर्न की बढ़ती संख्या का उल्लेख किया और उन्हें उद्यमशीलता से जुड़े एक समृद्ध इकोसिस्टम के एक संकेतक के रूप में निरूपित किया। उन्होंने छात्रों से न सिर्फ नौकरी मांगने वाला बल्कि नौकरी देने वाला बनने की दिशा में तैयारी करने का आह्वान किया। शिक्षा मंत्री ने डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों का भी उल्लेख किया और शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए तकनीक का लाभ उठाने का आह्वान किया। उन्होंने पूर्व छात्रों के नेटवर्क को और मजबूत करने तथा स्टडी इन इंडिया कार्यक्रम सहित भारत में शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण के दिशा में किए जा रहे विभिन्न प्रयासों को शामिल करने का भी आह्वान किया।

इस सम्मेलन के अलग–अलग सत्रों में, उच्च शिक्षा संस्थानों की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग; अकादमिक-उद्योग जगत और नीति निर्माताओं के बीच सहयोग; स्कूली, उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण; उभरती एवं विघटनकारी प्रौद्योगिकियों में शिक्षा और अनुसंधान जैसे विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया गया।

सम्मेलन के दूसरे दिन, क्यूएस रैंकिंग के संस्थापक और सीईओ श्री नुंजियो क्वाक्वेरेली ने ‘उच्च शिक्षा संस्थानों की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग: क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारतीय विश्वविद्यालय’ विषय पर एक प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में इस आशय के सुझाव शामिल थे कि कैसे भारतीय संस्थान अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं और बेहतर विश्व रैंकिंग प्राप्त कर सकते हैं। सत्र का संचालन आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर द्वारा सुस्पष्ट तरीके से किया गया और व्यापक रूप से यह बताया गया कि कैसे हमारे संस्थान प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने समग्र स्तर पर वैश्विक रैंकिंग में अपने प्रदर्शन में सुधार किया है।

इस सम्मेलन में आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार तिवारी,  दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति श्री योगेश सिंह और आईआईटी मद्रास के निदेशक श्री वी. कामकोठी द्वारा अन्य प्रस्तुतियां दी गईं और संबंधित सत्रों का संचालन क्रमशः आईआईटी परिषद की स्थायी समिति के अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन, राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीईटी) के अध्यक्ष डॉ. एन. एस. कलसी तथा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे द्वारा किया गया।

प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार तिवारी ने अकादमिक-उद्योग जगत और नीति निर्माताओं के बीच सहयोग  विषय पर अपनी प्रस्तुति में इस आशय की एक अंतर्दृष्टि दी कि जब शिक्षाविद, उद्योग जगत और नीति निर्माता एक साथ मिलकर काम करते हैं, तो विश्वविद्यालय ज्ञान, रोजगार और नवाचार के लिए शक्तिशाली इंजन बन सकते हैं। इस प्रस्तुति का संचालन श्री के.राधाकृष्णन ने किया।

एक अन्य सत्र में, स्कूली, उच्च और व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण विषय पर प्रस्तुति देते हुए प्रोफेसर योगेश सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा उठाए गए कई कदमों जैसे कि 2022-23 से समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए यूजीसीएफ 2022 तैयार करना, एनईपी को लागू करना, आदि का उल्लेख किया। एनसीवीईटी के अध्यक्ष श्री एन.एस.कलसी ने इस सत्र का संचालन किया।

अंतिम सत्र में, श्री वी. कामकोठी ने उभरती एवं विघटनकारी प्रौद्योगिकियों में शिक्षा और अनुसंधान विषय पर अपनी प्रस्तुति में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस, सिमुलेशन एवं मॉडलिंग, सिक्योर सिस्टम और इंटेलिजेंट मैन्युफैक्चरिंग की संभावनाओं तथा जरूरतों पर चर्चा की। इस प्रस्तुति का संचालन एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे ने किया।

राष्ट्रपति 161 केन्द्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों के विजिटर हैं। इन 161 संस्थानों में से 53 संस्थानों ने इस सम्मेलन में वास्तविक रूप से भाग लिया जबकि अन्य संस्थान वर्चुअल रूप से जुड़े। राष्ट्रपति ने उन दानदाताओं की मेजबानी की और उन्हें सम्मानित भी किया, जिनके उदार योगदान ने केन्द्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में “वापस देने” की संस्कृति के निर्माण और “आत्मनिर्भर भारत” के उद्देश्यों को बढ़ावा देने में मदद की है।

अपने धन्यवाद ज्ञापन में, शिक्षा राज्यमंत्री श्री सुभाष सरकार ने सभी प्रतिभागियों को विजिटर्स कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित करने और महामारी की वजह से दो कठिन वर्षों के बाद व्यक्तिगत रूप से मिलने का अवसर देने के लिए राष्ट्रपति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन की प्रक्रिया के माध्यम से मार्गदर्शन करने के लिए केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और आईआईटी/ एनआईटी के निदेशकों, सचिव (उच्च शिक्षा), राष्ट्रपति सचिवालय, मंत्रालय, यूजीसी और एआईसीटीई के अधिकारियों और सम्मेलन में भाग लेने वाले अन्य अधिकारियों का भी धन्यवाद किया।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रगतिशील स्वतंत्र भारत, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध विरासत और भारत की उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव का शुभारंभ किया, जोकि स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति एक श्रद्धांजलि भी है। उन्होंने उच्च शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों एवं विषयों पर इस सम्मेलन के दौरान दी गई विभिन्न प्रस्तुतियों और इस क्षेत्र में की गई विभिन्न पहलों की रूपरेखा तैयार करने की सराहना की। उन्होंने कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे शैक्षणिक संस्थानों में नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उद्योग-अकादमिक सहयोग को बहुत महत्व देती है। राज्यमंत्री ने दानदाताओं का भी धन्यवाद किया और यह विश्वास व्यक्त किया कि सभी संस्थान स्वयं को दूसरों के अनुसरण के लिए मानक के रूप में स्थापित करने की दिशा में कड़ी मेहनत करना जारी रखेंगे।

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