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जी-20 ने महामारी से उबरने का मजबूत संदेश दिया: पीयूष गोयल

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा कपड़ा मंत्री श्री पीयूष गोयल ने आज कहा कि जी-20 में भारत विकासशील देशों के आम नागरिकों तथा उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं के हक में आवाज उठाता रहेगा।

वे इटली में हाल में संपन्न हुये 16वें जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की भागीदारी की उपलब्धियों के बारे मीडिया से बात कर रहे थे।

वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री के लिये यह आठवां जी-20 शिखर सम्मेलन था तथा 2019 में ओसाका शिखर सम्मेलन के बाद वे पहली बार व्यक्तिगत रूप से इसमें शामिल हुये हैं। इस बार के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता इटली ने की थी और उसकी विषयवस्तु ‘पीपुल, प्लेनेट, प्रॉस्पैरिटी’ थी, जिसमें स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, रोजगार, शिक्षा, पर्यटन और जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने सहित महामारी से उबरना शामिल था।

प्रधानमंत्री ने सभी तीन शिखर सत्रों में हिस्सा लियाः वैश्विक अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण तथा सतत विकास। शिखर में सभी राष्ट्राध्यक्षों ने ‘रोम घोषणापत्र’ को स्वीकार किया।

श्री पीयूष गोयल ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि जी-20 ने कोविड-19 टीकाकरण को पूरे विश्व के हित में स्वीकार किया। इसके अलावा इस बात पर भी संतोष व्यक्त किया कि इस वर्ष के अंत तक देनदारियों की वसूली रोक दी जायेगी। इसके परिणामस्वरूप मई 2020 और दिसंबर 2021 के बीच 12.7 अरब अमेरिकी डॉलर की देनदारी रुक जायेगी, जिससे 50 देशों को फायदा पहुंचेगा।

कृषि के बारे में श्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि छोटे और सीमान्त किसानों की आजीविका में सुधार किया जाये तथा इस सम्बंध में उसने आम सहमति बनाने में भी सफलता प्राप्त की। केवल जलवायु लक्ष्यों पर ही फोकस न करते हुये भारत ने अन्य विकासशील देशों के साथ ऊर्जा और जलवायु के सम्बंध में सहमति बनाई कि विकासित देशों को इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये क्या कार्रवाई करनी चाहिये।

पहली बार जी-20 ने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये वित्त एवं प्रौद्योगिकी के प्रावधान सहित सतत एवं दायित्वपूर्ण खपत एवं उत्पादन को “महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक” माना है, ताकि जलवायु लक्ष्यों को 1.5 डिग्री लक्ष्य के दायरे के भीतर रखा जा सके।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का भी यही दृष्टिकोण है कि पूरी दुनिया में सतत जीवनशैली को प्रोत्साहन दिया जाये। सतत खपत और दायित्वपूर्ण उत्पादन तौर-तरीके एसडीजी 12 की देन हैं। इनका लक्ष्य है कि विकसित देशों को इस बात के लिये प्रोत्साहित किया जाये कि वे अपनी विलासितापूर्ण ज्यादा ऊर्जा खपत वाली जीवनशैली में कमी लायें।

श्री गोयल ने कहा कि भारत ने जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के आधार के रूप में यूएनएफसीसीसी और उसके पेरिस समझौते की रोशनी में साझा अपितु विविधतापूर्ण दायित्व एवं सम्बंधित क्षमतायें (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों को शामिल करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “भारत ने इस बात को साफ तौर पर पहचानने पर जोर दिया कि विकसित देशों को यह एहसास हो 2020 तक प्रति वर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा नहीं किया गया है और उसे 2023 से पहले हासिल नहीं किया जा सकता।”

श्री गोयल ने अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक और निजी वित्त को लामबंद करने की जी-20 की प्रतिबद्धता के बारे में भी बताया, जिसके तहत हरित, समावेशी सतत विकास का समर्थन किया जाना है तथा 2021 के अंत तक कार्बन को रोकने  वाली प्रौद्योगिकी से युक्त न होने वाले नये ताप बिजली घरों को अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त के प्रावधानों को समाप्त किया जाना है।

उन्होंने कहा कि जी-20 विभिन्न स्रोतों से निर्बाध ऊर्जा प्रवाह, आपूर्तिकर्ताओं, आदि को कायम रखने के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा बाजार की स्थिरता के रास्ते तलाशने की जरूरत है। श्री गोयल ने कहा कि आपदा रोधी अवसंरचना के लिये सहयोग की भूमिका को समझा गया तथा उसके तहत सतत शहरी योजना के एजेंडा को तेजी से बढ़ाने पर जोर दिया गया।

टैक्स से बचने की रणनीति से निपटने और लाभों को साझा करने के बारे में जी-20 स्वरूप की उपलब्धि को रेखांकित करते हुये श्री गोयल ने कहा कि अधिक स्थिर और न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली के लिये यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

श्री गोयल ने कहा जी-20 ने जांच की आवश्यकताओं एवं परिणामों, टीकाकरण प्रमाणपत्र तथा डिजिटल एप्लीकेशन को आपसी मान्यता के महत्त्व को भी पहचाना। उन्होंने कहा, “जी-20 ने  विकास के लिये आंकड़ों की भूमिका को दोबारा स्वीकार किया।”

श्री गोयल ने कहा कि भारत ने लैंगिक विषमता आधारित हिंसा को समाप्त करने और कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये जोर दिया। भारत ने घरेलू कामकाज और लोगों की देखभाल में लगे लोगों को भुगतान की असमानता की आलोचना को भी शामिल करने पर जोर दिया।

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