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व्यक्ति के कर्म और विचार अगर महान होते हैं और व्यक्ति स्व का नहीं बल्कि पर का विचार करता है, तो उसके यश को कोई रोक नहीं सकता

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज दिल्ली में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की 160वीं जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित किया।

इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जैसा व्यक्तित्व करोड़ों वर्षों में एक बार ही जन्म लेता है। बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी होने, अनेक सिद्धियों की प्राप्ति करने, अनेक सम्राटों जितना यश प्राप्त करने के बाद भी एक भिक्षुक की तरह रहना और स्वभाव में विनम्रता बनाए रखना एक बहुत बड़ा साधु लक्षण है जो पंडित मदन मोहन मालवीय में था। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक और देशभक्ति और आत्मत्याग की प्रतिमूर्ति थे। एक महान शिक्षाविद् जिन्होंने शिक्षा के मूलतत्व को जाना और इस देश को किस प्रकार की शिक्षा की ज़रूरत है और भविष्य में किस प्रकार की शिक्षा की ज़रूरत पड़ने वाली है, इन दोनों बातों को समझते हुए एक नए प्रकार की शिक्षा पद्धति काशी विश्वविद्यालय में प्रस्थापित करने का उन्होंने प्रयास किया। वे एक प्रतिभाशाली अधिवक्ता, प्रखर वक्ता, तेजस्वी पत्रकार और तीव्र बुद्धि के धनी थे, लेकिन उन्होंने विनम्रता कभी नहीं छोड़ी।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि ये बड़े दुख की बात है जब देश के इतिहास को देखते हैं तो लगता है कि आज़ादी के तुरंत बाद ही महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी को भारत रत्न मिल जाना चाहिए था। लेकिन 2014 में जब उन्हें भारत रत्न मिला तब लोगों ने कहा कि महामना उनके लिए स्वयं बहुत बड़ी उपाधि थी, जो उन्हें रविन्द्रनाथ ठाकुर और महात्मा गांधी ने दी थी। श्री शाह ने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी जैसे कई व्यक्तित्वों को देश में भुलाने का प्रयास किया गया, चाहे सरदार पटेल हों, नेताजी हों, बाबा साहेब अंबेडकर हों, जयप्रकाश नारायण हों या महान गोपीनाथ बोरद्लोई हों। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के कर्म और विचार अगर महान होते हैं और व्यक्ति स्व का नहीं बल्कि पर का विचार करता है, तो उसके यश को कोई नहीं रोक सकता। पंडित मालवीय एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्थान थे। आज़ादी की लड़ाई उन्होंने सिर्फ़ एक राजनेता के तौर पर नहीं लड़ी, बल्कि एक पत्रकार के तौर पर, वक़ालत के ज़रिए भी लड़ी। मातृभाषा, भारतीय संस्कृति और भारतीयता का एकसाथ उद्घोष करने वाले एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय थे। उन्हें मालूम था अगर मैं मातृभाषा, भारतीय संस्कृति और भारतीयता की बात नहीं करूंगा तो आने वाले दिनों में इन सभी को कहीं ना कहीं भुलाने का प्रयास होगा। आज हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं कि आज़ादी के आंदोलन में आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद की नींव डालने का यश महामना को ही जाता है।

श्री अमित शाह ने कहा कि गंगा, गाय और हिन्दी के प्रति महामना की गहरी श्रद्धा थी और इन तीनों के लिए उन्होंने संस्थाएं भी बनाईं। हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा बहती रहे, इसके लिए गंगा महासभा की स्थापना की। गोहत्या के ख़िलाफ़ उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर उन्होंने 1886 में धर्म भारत महामंडल की स्थापना की। हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्तान की अवधारणा के तहत 1 मई, 1910 को प्रयाग में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की, जिसके पहले अध्यक्ष महामना थे। आज हम खड़ी बोली हिन्दी और देवनागरी लिपि के माध्यम से देश को जोड़ने का जो प्रयास देख रहे हैं, उसके जनक महामना ही थे। वे एक समाजसुधारक, राजनेता, वक़ील और भारतीय परंपरा के पोषक-चिंतक होने के साथ-साथ मितभाषी भी थे और इसी के कारण एक लंबे समय तक वैचारिक मतभेद रखने वाली अनेक संस्थाओं में वे एक साथ काम करते रहे। आज के ज़माने में ये कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई व्यक्ति हिन्दू महासभा और कांग्रेस का अध्यक्ष एक साथ रह सकता है और ये उनके व्यक्तित्व की महानता थी। रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें मैन ऑफ़ ग्रेट हार्ट कहा जिसका भारतीयकरण महात्मा गांधी ने महामना के नाम से किया और एक प्रकार से गुरूवर टैगोर और गांधी जी ने मिलकर उन्हें महामना की उपाधि दी।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि जब अंग्रेज़ों ने देश में फूट डालने का प्रयास शुरू किया तो महामना को पता चल गया कि अगर इसे अभी नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में देश का विभाजन हो जाएगा। 1916 में लखनऊ पैक्ट के तहत मुस्लिमों को अगल मताधिकार देने का जब प्रस्ताव आया तो पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने इसकी कड़ी आलोचना की। असहयोग आंदोलन में गांधी जी के साथ रहे लेकिन जब गांधी जी ने ख़िलाफ़त आंदोलन किया तो पंडित जी ने उसका विरोध किया कि ख़िलाफ़ आंदोलन इस देश में नहीं हो सकता और ये आंदोलन आने वाले दिनों में देश के विभाजन का बीज बोएगा, और ऐसा हुआ भी। देश के नवनिर्माण में सिर्फ़ अंग्रेज़ों से नहीं बल्कि अंग्रेज़ियत से भी छुटकारा पाने की ज़रूरत थी और इस बात को उन्होंने भलीभांति समझा। भारतीय शिक्षा के नए केन्द्र स्थापित करने होंगे जो हमारी चिरपुरातन शिक्षा पद्धति और संस्कृति के प्रति सम्मान और गौरव तो रखते हों, परंतु आधुनिक शिक्षा की भी सभी ज़रूरतों को भी संपन्न करते हों। उन्होंने कहा कि भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय सनातन वैदिक धर्म के चलते फिरते विग्रह है। मालवीय जी ने बहुत ही व्यावहारिकता के साथ वेदांत के सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात किया और आजीवन समाज के बीच में रहते हुए वेदांत का प्रचार किया और उनके इसी समर्पण को देख प्रोफेसर एस के मैत्रा ने उन्हें ‘प्रैक्टिकल वेदांती’  कहा।

श्री अमित शाह ने कहा कि अगर मालवीय जी में इतनी विनम्रता ना होती तो बड़े-बड़े नामों को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से नहीं जोड़ पाते, जैसे संगीतमेंपंडितओमकारनाथठाकुर,विज्ञानमेंप्रोफेसरशांतिस्वरूपभटनागर,साहित्यमेंरामचंद्रशुक्लऔरबाबूश्यामसुंदरदासयाहजारीप्रसाद द्विवेदी,आयुर्वेदमेंपंडितसत्यनारायणशास्त्री। अपनेअपनेक्षेत्रकेसभीशिखरपुरुषोंकोउन्होंनेबनारसहिंदूविश्वविद्यालयकेसाथजोड़नेकाप्रयासकिया।आजादीकीलड़ाईमेंशामिलहोनेकादेशकेलिएमहामनाकायोगदान,काशीहिंदूविश्वविद्यालय,हरिद्वारमेंहरकीपौड़ीपरगंगाको लाना,हरिद्वारमेंहरकीपौड़ीपरअगरगंगाआजनहोतीतोहमअविरल गंगाकीकल्पनाहीनहींकरसकतेथे, अनेकराजारजवाड़ोंकोउसकेसाथउन्होंनेजोड़ाथाऔरअंग्रेजोंकोझुकानेकाकामकियाथा। 1915 मेंवीरसावरकरऔरलालालाजपतरायकेसाथमिलकरउन्होंनेहिंदूमहासभाबनाई।गांधीजीसेअसहमतिकेबाद 1931 मेंदूसरेगोलमेजकांफ्रेंसमेंअसहमतिहोनेकेबावजूदभीदूसरेगोलमेजकांफ्रेंसमेंभारतीयप्रतिनिधिमंडलकेसदस्यकेनातेमालवीयजीनेकांफ्रेंसमेंहिस्सालिया।येदोनोंव्यक्तित्वकितनेबड़ेथे,मतभेदकोईछोटेनहींथेमगरसवालजबदेशकेहितकाथातोदोनोंनेमिलकरगोलमेजपरिषदमें देशकेहितोंकीरक्षाकेलिएनेगोशिएशनकरनातयकिया,येबताताहैकिदोनोंकितनेबड़ेमनकेलोगथेजोभारतकेभविष्यकेलिएअंग्रेजोंकेसाथनेगोशिएशनकरनेकेलिएगएथे।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पंडित जी बहुत बड़े वकील भी थे, वकालत करते नहीं थे परंतु बहुत बड़े वकील थे। जब चौरी चौरा कांड के सभी आरोपियों को फांसी सुनाई गई तब पंडित मदन मोहन मालवीय ने उनका केस लड़ा और सब को फांसी की सजा से बचाने का काम किया। तब उसी न्यायालय में ही न्यायाधीश ने खड़े होकर मालवीय जी का अभिवादन किया था, इनकी विद्वता का सम्मान किया था। पंडित मदन मोहन जी हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत तीनों भाषाओं के ज्ञाता थे। उनके जीवन की सभी उपलब्धियों में सबसे बड़ी उपलब्धि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना थी क्योंकि उन्होंने इसकी स्थापना के साथ ही सदियों तक एक विचार को, एक तत्व को प्राण देने का काम किया। स्वधर्म, स्वभाषा, भारतीय संस्कृति और स्वराज इन चार चीजों को शिक्षा के साथ बुनना और आधुनिक से आधुनिक शिक्षायुक्त युवाओं को बाहर निकाल कर देश के पुनर्निर्माण में लगाना। यह देश अपने आप में इतना अंतर्विरोध रखता था कि इसको जमीन पर उतारना, इस कल्पना को व्यवहारिकता में लाना बहुत कठिन था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प 1906 में लिया और आधारशिला 1916 में रखी और तब से लेकर आज तक हम सब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के योगदान को जानते हैं। ढेर सारे समाज सुधारों को भाषण दिए बगैर पंडित जी ने जमीन पर उतारने का काम किया था। अस्पर्शता सर्व सम्मत नहीं है जब यह पंडित जी ने कहा तो देश भर में इस बात को बहुत मान्यता भी मिली और उसका प्रचार भी हुआ। दो दशकों तक काशी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे, मृत्यु तक जुड़े रहे और कई सारी परंपराओं, नई नई विधाओं और अन्य प्रकार के शिक्षा के प्रयोगों को न केवल भारत बल्कि विदेश से आने वाले सभी विद्यार्थियों को भारतीयता पढ़ाने की व्यवस्था भी वहाँ पर की गई। आज जो नई शिक्षा नीति आई है कोई भी शिक्षाविद अगर इसका अध्ययन करेगा तो मालूम पड़ जाएगा कि पंडित मालवीय के विचार को नई शिक्षा नीति आगे बढ़ाने वाली है। मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति में मालवीय जी द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय शिक्षा, शिक्षा का भारतीयकरण और हमारी भाषा में शिक्षा, इन तीनों विषयों पर बल दिया गया है। शिक्षा आधुनिक तो हो, विश्व भर में जहां-जहां शिक्षा में नए बदलाव हों वह हमारे विद्यार्थियों को सीखने पड़ेंगे मगर हमारी भारतीयता और भाषा छोड़े बगैर। यह सारे बदलाव आत्मसात् किए जा सकते हैं, इस प्रकार की नई शिक्षा नीति का एक प्रारूप देश के सामने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने रखा है। मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा, वैज्ञानिक शिक्षा और मातृभाषा में शिक्षा यह तीनों बिंदुओं पर बल देने का काम किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य नई शिक्षा नीति में वर्तमान जरूरतों के लिए प्रासंगिक अनुसंधान कौशल और योग्यता के आधार पर एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली को लागू करने का प्रयास किया गया है। इसके साथ-साथ हमारी भाषाओं और भारतीयता को भी प्रधानता दी गई। इस नीति से मुझे विश्वास है कि देश में शोधकर्ताओं और पेशेवरों की एक फौज तैयार होगी जो अपनी भाषा में तैयार होकर विश्व पटल पर गौरव के साथ भारत का पक्ष रखने के लिए तैयार होगी और भारत नॉलेज सुपर पावर बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि महामना छात्रों को कहते थे कि कड़ी मेहनत करो और अपने शुद्ध आदर्शों को कभी मत भूलो, शास्त्रों और भुजाओं दोनों का ज्ञान प्राप्त करो और बौद्धिक और शारीरिक दोनों कौशल को प्राप्त करो इस प्रकार से उन्होंने युवाओं का रास्ता प्रशस्त किया था। हिंदी के लिए पंडित जी का बहुत बड़ा योगदान था और जो लोग हिंदी के आंदोलन के साथ जुड़े हैं, सबको मेरा विनम्र निवेदन है कि हिंदी को किस प्रकार से लोकभोग्य बनाया जाए, किस प्रकार से आगे ले जाया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि हिंदी संस्कृत की पुत्री है, सभी भारतीय भाषाएं आपस में बहने हैं और हिंदी उनमें सबसे बड़ी बहन है मगर उन्होंने साथ-साथ यह भी कहा है कि हिंदी को संस्कृत प्रचुर बनाकर संस्कृत के शब्दों का बोझ उस पर ना डालिए, फारसी के शब्दों का बोझ भी उस पर न डालिए। इसे एक प्रैक्टिकल भाषा के रूप में पूरा देश स्वीकार करे इस प्रकार से हमें इसका विकास करना पड़ेगा। हिंदी को अपने तरीके से फलने फूलने देना चाहिए अगर इस बात को हम समझते हैं तो मैं मानता हूं कि आने वाले दिनों में हिंदी का आंदोलन मजबूती के साथ चलेगा। स्वदेशी के लिए भी उन्होंने अपने विचार बहुत अच्छे तरीके से सरल भाषा में रखे। मैं सभी को एक बात कहना चाहता हूं कि यह आजादी का अमृत महोत्सव है, हमारी आजादी को 75 साल हो गए हैं, कई लोग कहते हैं कि किसी ने यह नहीं किया, किसी ने वह नहीं किया, यह करते तो आज यहां होते, जिसने जो किया है वह किया है मगर हमारे पास तो समय है, हमारा पूरा जीवन अभी जीना बाकी है हम क्या कर सकते हैं, आजादी के अमृत महोत्सव के समय हमने यह संकल्प करना है कि आजादी की शताब्दी जब आएगी तब भारत कहा खड़ा होगा। यह 25 साल का अमृत काल है, देश के प्रधानमंत्री जी ने देश की जनता का आह्वान किया है कि 25 साल को आजादी का अमृत काल मानकर 130 करोड़ की हमारी आबादी, हर भारतीय एक लक्ष्य तय करें कि 25 साल के बाद जब देश की आज़ादी की शताब्दी मनाई जाएगी तो देश कहां खड़ा होगा।  बीच में बहुत सारे प्रयास हुए पंडित जी को भुलाने के मगर अब पंडित जी को भारत रत्न भी दिया है और पंडित जी के विचारों को व्यापक स्वीकृति मिल रही है। उनकी कल्पना का भारत बनाने के लिए हम सब प्रयास करेंगे और हम सब संकल्पबद्ध भी होंगे।

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