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एनसीएलटी की ओर से ‘एनसीएलटी- आगे की राह’ पर संगोष्ठी का आयोजन

राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने आज ‘एनसीएलटी- आगे की राह’ विषय पर राष्ट्रीय स्तर की एक संगोष्ठी आयोजि‍त की।

मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रामालिंगम सुधाकर, अध्यक्ष, एनसीएलटी; श्री राजेश वर्मा, सचिव, कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय; और श्री रवि मित्तल, अध्यक्ष, भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) ने इस संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस न्यायाधिकरण के न्यायिक और तकनीकी सदस्यों, जो भारत भर में 15 पीठों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने भी इस संगोष्ठी में हिस्सा लिया।

मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रामालिंगम सुधाकर ने इस संगोष्‍ठी में मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कहा कि भारत मल्टी-ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की परिकल्पना कर रहा है। देश की अर्थव्यवस्था में अत्‍यंत महत्वपूर्ण माने जाने वाले उद्योग और वाणिज्य दरअसल कंपनी कानून के अलावा अन्य कानूनों के भी दायरे में आते हैं। मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रामालिंगम सुधाकर ने कहा कि सरकार ने कॉरपोरेट मुद्दों को हल करने के लिए संहिता [दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी)] पेश की है, ताकि भारत की कंपनियां आगे चलकर पूरी दुनिया की कंपनियों को कड़ी टक्‍कर दे सकें। एनसीएलटी कॉरपोरेट कानून का संरक्षक है और इसके प्रत्येक सदस्य को देश के आर्थिक विकास में अ‍हम भूमिका निभानी है। उन्होंने कहा कि आज आयोजित संगोष्ठी में प्रभावकारी और विवेकपूर्ण प्रक्रिया एवं समाधान सुनिश्चित करने पर विशेष रूप से ध्यान दि‍या जाएगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की चर्चा करते हुए मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) सुधाकर ने अपने संबोधन का समापन करने के दौरान कहा कि मामलों या विवादों के शीघ्र समाधान के लिए एक अहम पहलू आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रौद्योगिकी का विकास है, ताकि न्‍याय जल्‍द सुनिश्चित करना संभव हो सके। उन्होंने सुझाव दिया कि एआई का उपयोग मामलों के समाधान, विशेषकर आगे की कार्यवाही के लिए मामलों को स्वीकृति प्रदान करने में किया जा सकता है।

श्री राजेश वर्मा, सचिव, एमसीए ने अपने संबोधन में कहा कि एनसीएलटी गौरवान्वित करने वाला संस्थान है और इसने कंपनी अधिनियम एवं आईबीसी के तहत कॉरपोरेट विवादों का तेजी से समाधान किया है। कोविड-19 के दौरान एनसीएलटी के शानदार प्रदर्शन की प्रशंसा करते हुए श्री वर्मा ने कहा कि एनसीएलटी में दाखिल किए गए लगभग 83,000 मामलों में से तकरीबन 62,000 मामलों का निपटारा सफलतापूर्वक कर दिया गया है।

एनसीएलटी की विभिन्न उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए श्री वर्मा ने कहा कि इनमें कर्जदाताओं के हितों की रक्षा करना, संकटग्रस्त कंपनियों को अपने कारोबार से बाहर निकलने के लिए एक सुव्यवस्थित रास्‍ता प्रदान करना, कर्जदाताओं को संबंधित कंपनियों की परिसंपत्तियों का मूल्य प्राप्‍त करने में मदद करना और कर्जदाताओं एवं कर्जदारों दोनों के ही व्यवहार या नजरिए में सकारात्‍मक बदलाव लाना शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आईबीसी ईमानदार कारोबारी विफलताओं से उत्‍कृष्‍ट उद्यमिता को मुक्त करने में मददगार रही है, जो काफी मायने रखता है क्योंकि भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप परिवेश है।

श्री वर्मा ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि आईबीसी संहिता में व्‍यापक फेरबदल देखने को मिले हैं और अब तक मुख्य कानून में छह संशोधन किए गए हैं। श्री वर्मा ने यह भी कहा कि (उच्च न्यायालयों में) चुनौती दिए जाने पर आईबीसी के कई प्रावधान बेदाग निकले हैं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस नए कानून के विभिन्न पहलुओं का निपटारा अभूतपूर्व गति और जुनून के साथ न्यायशास्त्र के तहत किया है।

श्री वर्मा ने सुझाव दिया कि आईबीसी को और भी ज्‍यादा प्रभावकारी बनाने के लिए आईबीसी में एक सीमा पार दिवाला रूपरेखा की शुरुआत करने पर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विवाद समाधान की गति बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना और पदों को भरना दो प्रमुख कारक हैं।

श्री मित्तल, अध्यक्ष, आईबीबीआई ने इस संगोष्‍ठी में अपने संबोधन में कहा कि आईबीसी के दो आधार स्‍तंभ हैं अर्थात पूरी प्रक्रिया में समय सीमा तय की गई है और कर्जदारों के खिलाफ कर्जदाताओं को विवाद प्रबंधन का अधिकार दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अधिक मानकीकरण सुनिश्चित करने से मामलों के समाधान की गति बढ़ाई जा सकती है। श्री मित्तल ने कहा कि आईबीबीआई विवाद समाधान की प्रक्रिया को सरल बनाने में एनसीएलटी के साथ सहयोग करने के लिए सदैव तैयार है।

उद्घाटन सत्र के बाद तकनीकी सत्र आयोजित किया गया जिसमें श्री सुधाकर शुक्ला, पूर्णकालिक सदस्य, आईबीबीआई और प्रो. चरण सिंह, सीईओ, ईग्रो फाउंडेशन ने भी भाग लिया। न्यायाधिकरण के सदस्यों ने अन्य विषयों पर चर्चा की, जैसे कि आईबीसी की धारा 7 एवं 9 के तहत याचिकाओं को स्‍वीकृत करना, उत्पीड़न व कुप्रबंधन, लेन-देन से बचना, दिवाला एवं स्वैच्छिक परिसमापन- धारा 10 एवं धारा 59, आईबीसी, और समाधान योजना का अनुमोदन, इत्‍यादि।

राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के बारे में  

केंद्र सरकार ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) का गठन किया, जो कि 01 जून 2016 से प्रभावी हुआ। पहले चरण में कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने 11 पीठों की स्थापना की जिनमें से एक प्रधान पीठ की स्‍थापना नई दिल्ली में और दस पीठों की स्‍थापना भारत के विभिन्न स्थानों में की गई थी। मौजूदा समय में पूरे भारत में कुल मिलाकर 15 पीठ हैं जिनमें 48 सदस्य हैं जो कंपनी अधिनियम और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता 2016 से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हैं।

एनसीएलटी एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण है जिसका गठन कंपनी अधिनियम के तहत कॉरपोरेट विवादों से निपटने के लिए किया गया है। एनसीएलटी ही दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत कंपनियों की दिवाला समाधान प्रक्रिया और सीमित देयता भागीदारी के लिए निर्णायक प्राधिकरण है।

अपनी स्थापना से लेकर अब तक राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण में दाखिल किए गए कुल 83838 मामलों में से 62506 (75%) मामलों को इस न्यायाधिकरण द्वारा फरवरी 2022 तक निपटाया गया है। निपटाए गए मामलों में कंपनी अधिनियम के तहत 39446 मामले और दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत 23060 मामले शामिल हैं। यहां तक कि कोविड-19 के दौरान भी एनसीएलटी ने अपने दरवाजे खुले रखे और बड़ी संख्या में मामलों को निपटाया।

एनसीएलटी कॉरपोरेट क्षेत्र के सुव्यवस्थित विकास के लिए आईबीसी के प्रभावकारी कार्यान्वयन और सफलता में काफी सहायक रहा है।

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