देश-विदेश

भारत द्वारा पोषित धार्मिक सद्भाव और अनेकता में एकता के मूल्‍यों का संरक्षण किया जाए: उपराष्‍ट्रपति

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि धार्मिक सद्भाव और अनेकता में एकता हमारी सभ्यता के पोषित मूल्य हैं और प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय एकता के हमारे मूल्यों को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

श्री नायडू आज मध्य प्रदेश के इंदौर में श्री वैष्‍णव विद्यापीठ विश्‍वविद्यालय में दूसरे दीक्षांत समारोह को सम्‍बोधित कर रहे थे।

 उपराष्‍ट्रपति ने गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु श्री वैष्‍णव विद्यापीठ विश्‍वविद्यालय (एसवीवीवी) की स्‍थापना करने के लिए 135 साल पुरानी श्री वैष्‍णव समिति और ग्रुप ऑफ ट्रस्‍ट्स, इंदौर के प्रयासों की सराहना की।

   उन्‍होंने कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली को विश्‍वस्‍तरीय बनाने के लिए उसके कायाकल्‍प  और पुनर्जागरण की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि शैक्षणिक संस्‍थाओं को अकादमिक उत्‍कृष्‍टता, शारीरिक स्‍वस्‍थता, मानसिकसतर्कता, नैतिक शुचिता और सामाजिक विवेक पर ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए।

  उन्होंने विश्वविद्यालयों से ज्ञान नेटवर्क, अनुसंधान और नवाचार केंद्रों, कौशल विकास कार्यक्रमों का सृजन तथा संकाय विकास की सहायता के माध्यम से शिक्षा में गुणवत्ता, समानता और पहुंच की चुनौतियों को दूर करने का प्रयास करने का आग्रह किया।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी दिन-प्रतिदिन हमारे जीवन में गहरी पैंठ बनाती जा रही है, इसलिए देश को अधिक से अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए आज जरूरत इस बात की है कि अकादमिक पाठ्यक्रम को बदलते प्रौद्योगिकीय विकास के अनुरूप तथा औसत से बेहतर बनाया जाए।

श्री नायडू ने कहा कि प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में विश्वस्तरीय प्रकाशनों के लिए भारत को अनुसंधान सुविधाओं को उन्‍नत बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘’अनुसंधान एक ऐसा क्षेत्र है जहां हम पिछड़ रहे हैं और देश में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है’’

हमारी समृद्ध संस्कृति, विशेषकर हमारी भाषाओं के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि स्कूलों में हाई स्‍कूल के स्तर तक शिक्षण का प्राथमिक माध्यम मातृभाषा को बनाया जाना चाहिए।

श्री नायडू ने अकादमिक और उद्योगजगत के बीच सहयोग बढ़ाने का भी आह्वान किया। उन्होंने उद्योग जगत से आग्रह किया कि वे अकादमिक जगत के साथ सहयोग और अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सीएसआर कोष निर्धारित करें।

 श्री नायडू ने कहा कि भारत में दुनिया का मानव संसाधन केंद्र बनने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय लाभांश को साकार करने और भारत को 21 वीं सदी का नवाचार केंद्र बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल, ज्ञान और रचनात्मक चिंतन आवश्यक है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने शैक्षणिक संस्थानों को वैश्विक मानकों के अनुरूप उत्कृष्टता के केंद्रों में परिवर्तित करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमारे विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थागत संस्थानों को ऊंचाइयां छूनी चाहिए तथा उनकी गिनती शीर्ष रैंकिंग वाले वैश्विक शैक्षणिक संस्थानों में होनी चाहिए”।

विश्वविद्यालयों में योग्यता और उत्कृष्टता पुरस्कार जीतने वाले विद्यार्थियों में छात्राओं की ज्‍यादा तादाद को देखते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा और सशक्तीकरण जनांदोलन बनना चाहिए। श्री नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि बच्‍चों में दूसरों के लिए, विशेष रूप से समाज के कमजोर और हाशिए वाले वर्गों के लिए सहानुभूति होनी चाहिए।

उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि वे खुद को नवीनतम तकनीकों, नवाचारों और दुनिया में बदलावों के मुताबिक लगातार ढालते रहे हैं। श्री नायडू ने उन्हें पहले राष्ट्र के बारे में सोचने तथा अपने सपनों और एक अरब से अधिक जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करने की सलाह दी।

उन्होंने छात्रों को सच्‍चाई के मार्ग का दृढ़ता से पालन करने और हर समय नैतिकता और नैतिक मूल्‍यों को बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध रहने की सलाह दी।

इस अवसर पर मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री लाल जी टंडन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री,मध्य प्रदेश सरकार, श्री तुलसीराम सिलावत, उच्च शिक्षा मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार, श्री जीतू पटवारी, लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन और अन्य गणमान्‍य लोग उपस्थित थे

Related Articles

Back to top button