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उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया वाली रणनीतियां सकारात्मक परिणाम दे रही हैं

भारत देश और उत्तर प्रदेश राज्य में बड़े पैमाने पर अचानक कोविड-19 के स्पाइक का अनुभव प्राप्त होने के साथ ही, इसमें शामिल सभी लोगों के लिए स्थिति को यथा शीघ्र नियंत्रित करना और इसे बदतर होने से रोकना आवश्यक था। उत्तर प्रदेश द्वारा महामारी से प्रभावीपूर्ण रूप से लड़ने और लोगों को राहत पहुंचाने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई गई। इन उपायों में ऑक्सीजन वितरण को सुव्यवस्थित करना, ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय मामलों की खोज करना और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूती प्रदान करना शामिल है।

ऑक्सीजन वितरण

ऑक्सीजन, नैदानिक उपचार के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक होने के कारण, उसका प्रबंधन युद्ध स्तर पर किया जाना आवश्यक था। इसके लिए, सबसे महत्वपूर्ण मीट्रिक पर ध्यान केंद्रित किया गया – ऑक्सीजन ले जाने के लिए परिसंपत्तियों केस्थान और परिसंपत्तियों के मूवमेंट का यथासंभव प्रबंधन करना, अनुकूलन पर अंतर्निहित ध्यान केंद्रित करने के साथ।

राज्य सरकार ने पूरे उत्तर प्रदेश और अन्य सोर्सिंग राज्यों जैसे झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में टीमों को सक्रिय किया, जिससे ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर जाने वाले ट्रकों को इंटरसेप्ट किया जा सके, स्मार्ट फोन पर डाउनलोड होने वाले एक एप्लिकेशन का इस्तेमाल किया गया –जिसे उस समय गतिशील अवस्था वाले प्रत्येक ट्रक में, उनके मार्ग में बिना कोई बाधा उत्पन्न किए हुए, रखा गया। उनके लाइव लोकेशन को ट्रैक करने के लिए सामान्य एसओपी का पालन किया गया। इसे स्टील्थ अप्रोच कहा गया–एक युद्ध जैसी स्थिति जिसमें गति और पैमाना किसी भी समय सर्वोत्कृष्ट और परिपूर्ण होता है। इस दौरान जो प्रमुख मैक्रो-निर्णय लिए गए उनमें पूर्वी राज्यों से उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए रेल नेटवर्क को तैनात करना और वायु सेना की मदद से खाली सिलेंडरों को फिर से भरने के लिए आगरा, हिंडन और लखनऊ जैसे हवाई अड्डों का उपयोग करना शामिल है।

ऐप के माध्यम से मिली जानकारी को एक लाइव डैशबोर्ड में फीड किया गया, जो ऑक्सीजन ले जाने वाले सभी ट्रकों के बारे में बताने में सक्षम था और इसने निर्णय लेने वालों को आवंटन में अंतर को कुशलता और तेजी के साथपाटने और ऑक्सीजन की आपूर्ति को स्थिर करने में सहायता प्रदान की। टैंकरों और उनके संचालन के संदर्भ में वास्तविक समय की जानकारी, ऑक्सीजन आपूर्ति श्रृंखला का सबसे महत्वपूर्ण तत्व होने के कारण, उसका प्रदर्शन निर्णय लेनेवालों के लिए डैशबोर्ड का उपयोग करके किया गया। “ऑक्सीट्रैकर” नामक इस डैशबोर्ड का इस्तेमाल एक ही बार में पूरे बेड़े की दक्षता का प्रदर्शन करने के लिए किया गया। टैंकरों के संदर्भ में प्रदर्शित प्रमुख तत्वों में शामिल हैं: “रनिंग”, “खाली या भरा हुआ ट्रांजिट”, “ईटीए टू डेस्टिनेशन”, “ड्राइवर का नाम” और “नंबर” और “मात्रा”, “विमान, ट्रेन या सड़क से टैंकर का परिवहन”।

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उत्तर प्रदेश में 5 प्रमुख केंद्र बनाए गए –संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला को सर्वोत्तम रूप से काम करने के लिए प्राथमिक केंद्र के रूप में मोदीनगर, आगरा, कानपुर, लखनऊ और वाराणसी को और माध्यमिक केंद्र के रूप में बरेली और गोरखपुर को बनाया गया। इन केंद्रों द्वारा अपने आसपास के क्षेत्रों को 10 घंटे की अधिकतम समय सीमा के भीतर पोषित किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि इन हब के अंतर्गत आने वाले सभी टैंकरों को इन क्षेत्रीय केंद्रों में भेज दिया जाए और निर्दिष्ट स्थानों पर ऑक्सीजन का वितरण किया जाए और 10 घंटे के भीतर हवाई अड्डों तक पहुंचा जाए। इनमें से प्रत्येक केंद्र के पास हवाई अड्डे हैं और इन हवाई अड्डों का उपयोग टैंकरों को शिपिंग पॉइंट्स पर वापस लाने के लिए किया गया-वैसे स्थानों पर जहां सेउत्तर प्रदेश को गैस कोटा आवंटित किया जाता है – जामनगर, जमशेदपुर, बोकारो, दुर्गापुर, हल्दिया और पश्चिम बंगाल के कुछ अन्य केंद्र। सभी शिपिंग केंद्र हवाई अड्डों के दायरे में भी आतेहैं। एयरलिफ्ट के कारण साइकिल टीम में 40% की बचत हुई।

एक बार जब खाली टैंकर दो के बैच में वापस आते हैं, तो उन्हें जल्द से जल्द भरकर, 4 के बैच में लोडिंग और हॉपिंग के लिए जल्द से जल्द रेल यार्ड में भेज दिया जाता है। ट्रेन को रेक के साथ भेजा जाता है जिसमें 4 टैंकर होते हैं। प्रत्येक ट्रेन को समर्पित हब पॉइंट तक कम से कम 80 मीट्रिक टन लेकर जाना पड़ता है। एक बार ट्रेन के रवाना होने के बाद, इस बात पर निर्भर करता है कि वह कहां से चलती है, शिपिंग पॉइंट और हब के आधार पर, 16-22 घंटे की समय सीमा के भीतर, किसी एक हब पर ट्रेनों की प्राप्ति शुरू हो जाती है। एक बार जब हब को टैंकरों की प्राप्ति हो जाती है, तो उन्हें ज़ोन के भीतर निर्धारित मार्गों पर चलाया जाता है, जिससे वायु सेना को कतार प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करते हुए साइकिल समय को 10 घंटे के भीतर रखा जा सके। वायु सेना को हब और शिपिंग सेंटरों के बीच प्रतिदिन 16 उड़ानें संचालित करने की आवश्यकता होती है।

इस पद्धति से यूपी सरकार को लगभग 10 दिनों में लगभग 1000एमटी उठाने में मदद मिली है। इससे पहले, यूपी 250एमटी का उठाव और वितरण कर रहा था। परिणामों के प्राप्ति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अन्य कारकों में प्रभावशील नेतृत्व; निर्णय लेने की गतिशीलता; फुर्ती और चपलता के साथ सहयोग करने वाली क्रॉस फंक्शनल टीमें; क्षेत्र में बहुत तेजी के साथविकसित और तैनात किए जा रहे एसओपी; व्यक्ति, प्रक्रिया और प्रौद्योगिकी- त्रय का संचालन; और “विशाल आपूर्ति श्रृंखला” जटिलता मैट्रिक्स काडिकोडिंग।

ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए, भारत सरकार द्वारा 14 संस्थानों के लिए 14 पीएसए संयंत्र स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 5 संयंत्र पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं और शेष 9 को कार्यान्वयित किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा पीएसए के 4 संयंत्रों के लिए खरीद आदेश जारी किए गए हैं।येसंयंत्र 13 जिलों में मौजूदा संचालित ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों के अतरिक्त हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार पीएम केयर के अंतर्गत अतिरिक्त पीएसए संयंत्रों की स्थापना के लिए स्थानों की पहचान करने हेतु भारत सरकार के साथ लगातार संपर्क में है और राज्य ने भारत सरकार के साथ 167 अतिरिक्त स्थलों की सूची साझा की है। उत्तर प्रदेश ने इस गतिविधि का उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात योजनाओं के लिए एक खाका विकसित करने के लिए किया है, जिसका उपयोग भविष्य में कोविड-19 की तीव्रता या सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट उत्पन्न होने पर ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाओं या सामाग्रियों का प्रभावी, कुशल और समय पर वितरण सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय मामलों की खोज

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्तमान कोविड-19 संकट के दौरान “अंतिम छोर तक जाने” के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों की सराहना की है। इसने ट्वीट किया है, “उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 के सक्रिय मामलों की खोज घर-घर जाकर करने की शुरुआत की है, जिससे लक्षण वाले लोगों का परीक्षण, उनका तेजी के साथ आइसोलेशन, रोग प्रबंधन और संपर्क ट्रेसिंग करकेसंचरण को नियंत्रित किया जा सके।”

उत्तर प्रदेश में कई दिनों से सरकारी टीमें हजारों गांवों में घूम रही हैं। प्रत्येक निगरानी टीम में दो सदस्य होते हैं, जो रैपिड एंटीजन टेस्ट (रैट) किट का उपयोग करके कोविड-19 के लक्षणों वाले सभी लोगों का परीक्षण करने के लिए गांवों और दूरदराज के बस्तियों में घरों का दौरा करते हैं। जिन लोगों का परीक्षण सकारात्मक प्राप्त होता है उन्हें जल्द से जल्द आइसोलेट कर दिया जाता है और उन्हें रोग प्रबंधन की उचित सलाह के साथ एक दवा किट दिया जाता है। सकारात्मक परीक्षण वाले लोगों के संपर्क में आएसभीलोगों का एक रैपिड रिस्पांस टीम द्वारा उनके घर पर ही आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जाता है और उन्हें क्वारंटाइन किया जाता है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित रूप से नमूना संग्रह करने और परीक्षण जारी रखने के साथ-साथ राज्य के प्रत्येक जिले के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक ब्लॉक को दो मोबाइल वैन आवंटित की जाती है। इस गतिविधि को करने के लिए और सभी ग्रामीण क्षेत्रों को कवर करने के लिए,राज्य सरकार द्वारा राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से 141,610 टीमों और 21,242 पर्यवेक्षकों को तैनात किया गया है।

जिनमें लक्षण दिखाई देता है उनका परीक्षण किया जाता है और दवा किट प्रदान की जाती है और क्वारंटाइन और आइसोलेशन के बारे में जानकारी दी जाती है, घर और अस्पतालों दोनों जगहों पर। जिनमें कोविड-19 के लक्षण नहीं हैं उन लोगों को टीका लगाने और भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका संचरण को रोकने के लिए कोविड-उपयुक्त व्यवहारों का पालन करने का आग्रह किया जाता है। माइक्रो प्लानिंग, हाउस विजिट, कंकरंट मॉनिटरिंग और फॉलोअप, भारत में पोलियो उन्मूलन रणनीति के केंद्र में रहे हैं जिस से यह सुनिश्चित किया जा सका कि टीकाकरण और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच से कोई वंचित न जाए।

स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूती प्रदान करना

वर्तमान समय में प्रदेश के विभिन्न कोविड अस्पतालों में लगभग 65,000 आइसोलेशन बेड उपलब्ध हैं। राज्य के विभिन्न कोविड अस्पतालों में वेंटिलेटर/एचएफएनसी/बीआईपीएपी के साथ 15,000 से ज्यादा बेड उपलब्ध हैं। सभी L1, L2 और L3 अस्पतालों में कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए लगभग 80,000 बेड उपलब्ध कराए गए हैं। प्रदेश में कोविड मरीजों के इलाज के लिए लेवल 2 और लेवल 3 केकुल 209 अस्पताल उपलब्ध हैं। प्रदेश में 307 निजी अस्पताल भी कोविड मरीजों का इलाज कर रहे हैं।प्रत्येक जिले में, 2 सीएचसी को 50 बेड वाले कोविडL1 प्लस अस्पतालों में तब्दील कर दिया गया है। इन कोविड ट्रीटमेंट सेंटर को खोलकर ग्रामीण क्षेत्रों में 7,500 बेड जोड़ दिए गए हैं। डीआरडीओ के सहयोग से लखनऊ में 500 बेड वाला कोविड अस्पताल खोला गया है। डीआरडीओ के माध्यम से वाराणसी में 700 बेड वाला अन्य अस्पताल शुरू किया गया है।

राज्य में लगभग 15 करोड़ लोगों को कोविड वैक्सीन लगायी जा चुकी है, जिनमें से तीन-चौथाई लोगों को एक खुराक प्राप्त हुई है जबकि 30 लाख से ज्यादा लोगों ने वैक्सीन की दोनों खुराक प्राप्त हो चुकी है। राज्य द्वारा लाभार्थियों का निशुल्क टीकाकरण करने का निर्णय लिया गया है। सीवीसी की पहचान कर ली गई है और भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा उपरोक्त समूह के लिए वैक्सीन के खरीद की शुरूआत कर दी गई है। इसके अलावा, प्राइवेट सीवीसी, जो भारत सरकार के चैनलों के अलावा अन्य जगहों से वैक्सीन खरीद रहे हैं, वे भी दिशा-निर्देशों के अनुसार कोविन पोर्टल पर पंजीकृत होकर टीकाकरण करवा रहे हैं। 1 मई, 2021 से 7 जिलों में 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए विशेष टीकाकरण अभियान की शुरूआत की गई, जिनमें 10 मई, 2021 से विस्तार करते हुए अब 18 जिलों को कवर किया जा रहा है।

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