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शिक्षा प्रणाली को नया रूप दें, जिससे छात्र 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना कर सकें: उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली: बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के हीरक जयंती समारोहों का बैंगलुरू में उद्घाटन करते हुए, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शिक्षा प्रणाली को एक नया रूप देने का आह्वान किया है, जिससे छात्र 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हों। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इससे भारतीय मूल्य और चरित्र को भी बढ़ावा मिलना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति में हमारी समृद्ध संस्कृति और विरासत के अलावा भारत के व्यापक इतिहास पर अधिकाधिक जोर देना चाहिए। श्री वेंकैया नायडू ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों के महान स्वतंत्रता सेनानियों के योगदानों को इतिहास की पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।

श्री नायडू ने कहा कि शिक्षा प्रणाली द्वारा हमारे उच्चतर शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों को अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार विशिष्टता केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की जरूरत है, जो छात्रों को एक ऐसे संपूर्ण मानव के रूप में परिवर्तित करने में मददगार हो, जिससे वे दूसरों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनें, दूसरे के विचारों को समझें और अन्य लोगों का सम्मान करें तथा उनका महत्व दें।

उपराष्ट्रपति ने शिक्षकों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और अभिभावकों को सलाह देते हुए कहा कि वे सरकार द्वारा तैयार किए गए नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन करें और उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रभावी, समतामूलक और समावेशी बनाने के लिए अपने सुझाव दें। उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं और शिक्षाविदों को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक बच्चे को एक संपूर्ण शिक्षा मिले।

शिक्षा की बढ़ती लागत पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह पीड़ादायक है। शिक्षा को मूलभूत जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे किफायती बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने को महंगी शिक्षा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा को अधिकाधिक समतामूलक और समावेशी बनाने की जरूरत है। भारत को ज्ञान और बुद्धि का एक विशाल खजाना बताते हुए उन्होंने कहा कि एक समय में भारत को विश्व गुरू के रूप में जाना जाता था। उन्होंने कहा कि अपनी गुरू-शिष्य परम्परा के साथ भारत की प्राचीन गुरूकुल शिक्षा प्रणाली एक मूल्य आधारित और संपूर्ण शिक्षा प्रदान करती थी, जिससे लोगों का सशक्तिकरण होता था। उन्होंने कहा कि हमें एक बार फिर से उन्हीं बुनियाद तक पहुंचना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने सामाजिक और महिला-पुरूष भेदभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए, लोगों की सोच में बदलाव लाने का आह्वान किया। साथ ही, उन्होंने शहरों और गांवों के बीच की खाई को बांटने और लोगों के लिए किफायती शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत पर जोर दिया।

इस अवसर पर सांसद श्री पी.सी. मोहन और श्री तेजस्वी सूर्य, बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष श्री जी.वी. विश्वनाथ, बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री एन.बी. भट, बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के संयुक्त सचिव डॉ. आर.वी. प्रभाकर और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के हीरक जयंती समारोहों का आज बैंगलुरू में उद्घाटन करते हुए, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शिक्षा प्रणाली को एक नया रूप देने का आह्वान किया है, जिससे छात्र 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हों। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इससे भारतीय मूल्य और चरित्र को भी बढ़ावा मिलना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति में हमारी समृद्ध संस्कृति और विरासत के अलावा भारत के व्यापक इतिहास पर अधिकाधिक जोर देना चाहिए। श्री वेंकैया नायडू ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों के महान स्वतंत्रता सेनानियों के योगदानों को इतिहास की पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए।

श्री नायडू ने कहा कि शिक्षा प्रणाली द्वारा हमारे उच्चतर शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों को अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार विशिष्टता केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की जरूरत है, जो छात्रों को एक ऐसे संपूर्ण मानव के रूप में परिवर्तित करने में मददगार हो, जिससे वे दूसरों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनें, दूसरे के विचारों को समझें और अन्य लोगों का सम्मान करें तथा उनका महत्व दें।

उपराष्ट्रपति ने शिक्षकों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और अभिभावकों को सलाह देते हुए कहा कि वे सरकार द्वारा तैयार किए गए नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन करें और उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रभावी, समतामूलक और समावेशी बनाने के लिए अपने सुझाव दें। उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं और शिक्षाविदों को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक बच्चे को एक संपूर्ण शिक्षा मिले।

शिक्षा की बढ़ती लागत पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि यह पीड़ादायक है। शिक्षा को मूलभूत जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि इसे किफायती बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने को महंगी शिक्षा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा को अधिकाधिक समतामूलक और समावेशी बनाने की जरूरत है। भारत को ज्ञान और बुद्धि का एक विशाल खजाना बताते हुए उन्होंने कहा कि एक समय में भारत को विश्व गुरू के रूप में जाना जाता था। उन्होंने कहा कि अपनी गुरू-शिष्य परम्परा के साथ भारत की प्राचीन गुरूकुल शिक्षा प्रणाली एक मूल्य आधारित और संपूर्ण शिक्षा प्रदान करती थी, जिससे लोगों का सशक्तिकरण होता था। उन्होंने कहा कि हमें एक बार फिर से उन्हीं बुनियाद तक पहुंचना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने सामाजिक और महिला-पुरूष भेदभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए, लोगों की सोच में बदलाव लाने का आह्वान किया। साथ ही, उन्होंने शहरों और गांवों के बीच की खाई को बांटने और लोगों के लिए किफायती शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने की जरूरत पर जोर दिया।

इस अवसर पर सांसद श्री पी.सी. मोहन और श्री तेजस्वी सूर्य, बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष श्री जी.वी. विश्वनाथ, बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री एन.बी. भट, बीएचएस हायर एजुकेशन सोसायटी के संयुक्त सचिव डॉ. आर.वी. प्रभाकर और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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