उत्तराखंड समाचार

Uttarakhand Election 2022 : जिसमें होगा दम, उसके संग होंगे हम, चुनावी हवा का रुख भांप रही है नौकरशाही

उत्तराखंड में सत्ता की बागडोर प्रदेश के मतदाताओं ने किस दल को सौंपी है, इस प्रश्न का उत्तर बेशक 10 मार्च को मिलेगा, लेकिन राज्य के प्रशासनिक तंत्र को चलाने वाली नौकरशाही को वक्त रहते चुनावी हवा का रुख भांपने की कोशिश कर रही है।

प्रदेश के सरकारी तंत्र में नौकरशाही का यही ही सिद्धांत रहा है जिसमें होगा दम, उसके संग होंगे हम। राजनीतिक दलों के दफ्तरों व सचिवालय के गलियारों और सरकारी दफ्तरों में इन दिनों एक प्रश्न का उत्तर जानने की बेताबी और कसरत हो रही है।

किस नेता की होगी मुख्यमंत्री बनने की संभावना सबसे ज्यादा
रुझानों, बातचीत और राजनीतिक विश्लेषणों के जरिये यह अनुमान लगाने की कोशिशें हो रही है कि प्रदेश की जनता ने सत्ता की कमान आखिर किस राजनीतिक दल के हाथों में सौंपी है।  उत्तर जानने की यही बेताबी प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र के सबसे मुख्य सूत्रधार नौकरशाही में भी दिखाई दे रही है।

नौकरशाह तो वक्त रहते हवा का रुख भांप लेना चाहते हैं। राजनीतिक दलों के नेता जहां अपने कार्यकर्ताओं से फीडबैक लेकर नतीजों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं तो नौकरशाह भी अपनी सरकारी मशीनरी के जरिये रुझान टटोल रहे हैं।

मीडिया के लोगों से भी जानने का प्रयास हो रहा है कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी। उत्सुकता इस को जाने की भी है कि भाजपा या कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बनने की संभावना सबसे ज्यादा किस नेता की होगी।

सत्ता बदलते ही बदल जाता है नौकरशाहों का रसूख   

उत्तराखंड में सत्ता बदलते ही नौकरशाहों का रसूख बदल जाता है। भाजपा सरकार में तीन बार नेतृत्व परिवर्तन के दौरान नौकरशाही में हुआ बदलाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार में तो मुख्य सचिव व अपर मुख्य सचिव स्तर के नौकरशाहों से लेकर तमाम कद्दावर नौकरशाहों की कुर्सियां बदल दी गई थीं। नौकरशाही को ताश के पत्तों की तरह फेंटा गया था। चतुर्थ तल जहां मुख्यमंत्री बैठते हैं, वहां सारे प्रमुख ओहदों पर नए नौकरशाहों को तैनात कर दिया गया था।

कभी आमनेसामने तो कभी एकदूजे के लिए नौकरशाही
भाजपा सरकार में नौकरशाही और लोकशाही कभी एक-दूसरे के आमने-सामने होती दिखी तो कभी एक-दूजे के लिए भी नजर आई। सरकार के ही मंत्रियों ने अपने विभागों में उन नौकरशाहों की तैनाती को तरजीह दी, जिनसे उनकी खूब पटरी बैठी। सियासी जानकारों मानना है कि सत्ता परिवर्तन के साथ ही नौकरशाहों को लेकर ये पसंद और नापसंद बदलती रहती है।

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