उत्तर प्रदेश

भारत के गांव देशी तकनीक से परिपूर्ण, जिसे विरासत के रूप में आने वाली पीढ़ी को प्रदान किया गया: सीएम

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज जनपद गोरखपुर में दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ’पर्यावरण, प्रौद्योगिकी एवं सतत ग्रामीण विकास’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। संगोष्ठी का आयोजन दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई0सी0एस0एस0आर0) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस अवसर पर उन्होंने महाविद्यालय की स्मारिका का विमोचन भी किया।
मुख्यमंत्री जी ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि जल, जीव, जन्तु, भूमि, पेड़-पौधों का समन्वित रूप ही पर्यावरण है। अगर इनका अस्तित्व ही संकट में होगा, तो जीवन सृष्टि कैसे आगे बढ़ेगी। यदि भूमि रहने लायक न हो तथा जल पीने लायक न हो, तो प्रौद्योगिकी एवं विकास का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं है। इस संगोष्ठी के माध्यम से हम लोग अपने स्तर से इसके समाधान के लिए प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि नगरीय क्षेत्रों में लोग अपने घर का कूड़ा, सड़कां या नाली में फेंक देते हैं और उसके निस्तारण की जिम्मेदारी नगर निगम पर छोड़ देते हैं, जबकि यह प्रत्येक नागरिक की दायित्व है। नगर निकाय अपने दायित्व के निर्वहन के साथ ही, नागरिकों के सहयोग से कार्य करे, तो इसके निस्तारण में सफलता मिलेगी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए प्रौद्योगिकी का योगदान महत्वपूर्ण है। कुछ दिन पहले मा0 सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राज्यों को धुन्ध के लिए नोटिस जारी किया है। पराली जलाने एवं औद्योगिक प्रदूषण के कारण धुन्ध की समस्या पैदा होती है। यह चीजें हमें बताती हैं कि हमने विकास तो किया, लेकिन विकास के अनुरूप तकनीक विकसित नहीं कर पाए। कम्बाईन हार्वेस्टर मशीन के साथ हम यदि रीपर लगाते हैं, तो वह पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उसी खेत में बिखेर देता है। जुताई के समय मिट्टी में मिलकर वह ग्रीन कम्पोस्ट के रूप मे खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सकता है। लेकिन आज हम पराली को जला रहे हैं, जिसका असर खेती पर तो पड़ ही रहा है। साथ ही, पर्यावरण के लिए खतरनाक गैसें भी उत्पन्न हो रही हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि इन सभी समस्याओं के लिए हम स्थानीय स्तर पर भी प्रयास कर सकते हैं। सतत विकास के लिए यू0एन0ओ0 ने वर्ष 2016 में पूरी दुनिया के लिए सतत विकास लक्ष्य तय किए। इस लक्ष्य में समग्रता के लिए आवश्यक 17 गोल्स हैं, जिसके तहत 169 लक्ष्य तय किए गए हैं। इन्हें प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक होगा, क्योंकि इसके बिना जीव सृष्टि को आगे बढ़ाना अत्यन्त कठिन होगा। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित 17 लक्ष्य दिए गए हैं। इनमें एक लक्ष्य समुद्र एवं समुद्री जीवों के संरक्षण से सम्बन्धित भी है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारतीय समाज शुरू से ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशील रहा है। अर्थववेद में पृथ्वी सूक्त में कहा गया है ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ अर्थात यह धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं। कोई भी पुत्र अपनी माँ पर इस प्रकार का प्रहार कभी स्वीकार्य नहीं करेगा। हमारी परम्परा हमें हमेशा जागरूक करती रही है, लेकिन हमने तकनीक का प्रयोग उस स्तर पर नहीं किया, जहां तक होना चाहिए। हमें आवश्यकतानुसार तकनीक को विकसित करना होगा। साथ ही, प्रयास करना होगा कि तकनीक लोगों के विकास एवं सतत विकास में योगदान दे सकें।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि महात्मा गांधी जी भी इस दृष्टि में बहुत दूरदर्शी थे। उन्हें वास्तविक भारत की समझ थी। वे ग्राम स्वराज की बात करते थे। पहले गांव आत्मनिर्भर थे, लोग मिलकर रहते थे और भाव भंगिमाओं के साथ राष्ट्रीयता से जुड़े थे, लेकिन सरकारों पर उनकी निर्भरता शून्य थी। वे कृषि, पशुपालन, आजीविका का सृजन, व्यापार संचालन स्वयं करते थे। समय पर सरकार को टैक्स भी देते थे। गांव की सड़कें ग्राम पंचायत स्वयं बनाती थी। कूड़ा प्रबन्धन के लिए हर गांव में खाद का गड्ढा होता था। उनका अपना चारागाह, बगीचा, तालाब होता था। तालाब के जल का संरक्षण करते थे। आज वर्षा का पानी व्यर्थ में बह जाता है, उसके बाद हम पानी के लिए तरसते हैं, किन्तु पहले गांव में तालाब गांव के जल की आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम था।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि विकास हुआ हैण्डपम्प आ गए, पाईप पेयजल योजना आ गई, जिसमें हमने गांव की नाली को तालाब से जोड़कर उसे भी प्रदूषित कर दिया। इस नए विकास के मॉडल में हमें इंसेफ्लाइटिस जैसे रोग प्राप्त हुए। इससे 40 वर्षों में केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश में 50,000 बच्चों की मौत हुईं और जहां भी विकास के इस निगेटिव मॉडल को स्वीकार किया गया उन क्षेत्रों में भी मौतें हुईं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रयास नहीं हुए। पंजाब में एक संत ने इस सम्बन्ध में एक देशी मॉडल विकसित किया था। वर्ष 2016 में नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से गंगा जी की अविरलता एवं निर्मलता को बनाए रखने के प्रयास सभी के सामने हैं। इस परियोजना के लागू होने से पहले गंगा जी बहुत प्रदूषित थीं, किन्तु इस मॉडल में नए एस0टी0पी0 लगाए गए और इसके माध्यम से शहरी सीवेज एवं गारबेज को ट्रीट कर, इसके जल को सिचांई जैसे कार्यों के लिए उपयोग किया गया। पहले की तुलना में गंगा जी अब स्वच्छ हुई हैं। गांगेय डॉल्फिन जैसे जलीय जीव फिर से दिखाई देने लगे हैं। अब इसमें स्नान करने से प्रदूषण के कारण त्वचा पर होने वाले रोग नहीं होते।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि इस चुनौती के समाधान में सरकार, संस्थान और नागरिकों की भी जिम्मेदारी होनी चाहिए। जब सब मिलकर इस कार्यक्रम से जुड़ेंगे, तो पर्यावरण की रक्षा कर पाएंगे। साथ ही, प्रौद्योगिकी को भी उसी के अनुरूप लाने में सफलता प्राप्त होगी। प्रदूषण के कारण दिल्ली जैसे शहरों में सख्त कानून लाना पड़ रहा है। किसानों ने हार्वेस्टर मशीन तो ली, किन्तु रीपर नहीं लिया, जिससे वह पराली जलाता है। हमने बायोफ्यूल्स के रूप में उसको उपयोगी बनाने के लिए पद्धति का निर्माण नहीं किया। इन्हीं का परिणाम है कि पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों की स्थिति प्रदूषण के कारण गम्भीर है। पहले गांव में खाद का गड्ढा होता था, अब उस पर कब्जा कर लिया गया है। कूड़ा भी जहां-तहां फेंक दिया जाता है। इन समस्याआें के समाधान के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत हर घर में शौचालय बनवाए गए। स्वच्छता अभियान संचालित किया गया, जिससे नागरिक जुड़कर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा है कि भारत में वर्ष 2070 तक विकास का ऐसा मॉडल बनाना होगा, जहां कार्बन उत्सर्जन शून्य हो। कार्बन उत्सर्जन को जीरो करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जाने चाहिए। पहले गावांं में भवन का एक मॉडल अपनाया गया था, जो मौसम के अनुकूल गर्मियों में ठण्डे एवं सर्दियों में गर्म रहते थे। आज के घरों के मॉडल तो बाहर के ताप से गर्मियों में ज्यादा गर्म एवं सर्दियों में ज्यादा ठण्डे होते हैं। हमने इसे पर्यावरण के अनुकूल नहीं बनाया। हमें पर्यावरण के अनुकूल मॉडल बनाना पड़ेगा। इसके लिए संस्थानों की जिम्मेदारी ज्यादा बनती है। उन्हें ऐसी राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के साथ-साथ प्रोजेक्ट वर्क को अपनाना होगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गांव की नाली का पानी अगर तालाब में न जाए, तो तालाब साफ रहेगा। इससे जल संरक्षण के साथ ग्राउण्ड वॉटर के रूप में हमें शुद्ध पेयजल भी प्राप्त होगा। गांव के ड्रेनेज सीवर का गांव से दूर देशी पद्धति के उपयोग से ट्रीटमेण्ट करना होगा। देशी तकनीक के माध्यम से जल-जमाव वाले क्षेत्र में जल संरक्षण के लिए लाखों रुपये के आधुनिक मॉडल के स्थान पर कुछ हजार रुपये में ही ईंट और बालू से गड्ढे में जल संरक्षण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत के गांव देशी तकनीक से परिपूर्ण हैं, जिसे विरासत के रूप में आने वाली पीढ़ी को प्रदान किया गया है। आज समय के अनुकुल तकनीक को अपनाकर, इसे देशी पद्धति से जोड़कर आगे बढ़ाना होगा। यहां की जैव पारिस्थितिकी के अनुसार शिक्षण संस्थानों को तकनीक के विकास को आगे बढ़ाना होगा। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह संगोष्ठी इसे आगे बढ़ाने में सार्थक भूमिका निभाएगी।
संगोष्ठी को दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर की कुलपति सुश्री पूनम टण्डन एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के अध्यक्ष श्री वी0एन0 शर्मा ने भी सम्बोधित किया।
इस अवसर पर सांसद श्री रवि किशन शुक्ल, गोरखपुर के महापौर श्री मंगलेश श्रीवास्तव, महाविद्यालय के शिक्षक, शोधार्थी एवं अन्य छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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