उत्तर प्रदेशदेश-विदेश

राजनीतिक हित के लिए विरोध के नाम पर हिंसा निंदनीय

 बीते शीतकालीन सत्र में संसद के दोनों सदनों से पारित होने और राष्ट्रपति महोदय की मुहर के बाद एक लम्बे समय से बहुप्रतीक्षित नागरिक संसोधन विधेयक अब कानून बन चुका है। यह दशकों से लंबित एक एसी बहुप्रतीक्षित ज़रुरत थी जो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के निर्णयकारी नेतृत्व और आदरणीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी की दृढ इच्छाशक्ति की बदौलत पूरी हुई है। एक लम्बे अरसे से पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे वहां के अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले हिंदु ,बौद्द ,सिक्ख ,ईसाई ,जैन और पारसी वर्ग के धार्मिक कारणों से प्रताड़ित लोग, जो 31 दिसम्बर 2014  से पहले भारत में शरण ले चुके हैं, को नागरिकता प्रदान कर न्याय और गरिमापूर्ण जीवने देने का काम इस कानून के माध्यम से संभव होगा।अत: किसी के मन में कोई संशय का भाव नहीं  होना चाहिए कि भारत के किसी भी धर्म के नागरिक पर इस कानून का कोई प्रभाव पड़ने वाला है।इसमें कोई संदेह नहीं कि यह कानून मानवता के उच्च मूल्यों तथा मानवीय संवेदनाओं की कसौटी पर सौ प्रतिशत खरा उतरने वाला है।कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि हमारे पड़ोस के देशों , पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बांग्लादेश ,में वहां के अल्पसंख्यको को किस दुर्दशा में अपना जीवन यापन करना पड़ता होगा कि वे वहां निकलकर शरणार्थी के रुप में भारत में रहने को मजबूर हुए ।हमारा संविधान सबको धर्म और आस्था की स्वतंत्रता देता है, लिहाजा हमारा दायित्व है कि हम उन लगों कि चिंता करे जो सिर्फ इस कारण से धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हुए क्योंकि 1947 में हुए कांग्रेस स्वीकृत धर्म आधारित विभाजन की त्रासदी में वे पाकिस्तान में रह गए थे। हमें यह भी स्वीकारना होगा कि हम उनकी दयनीय स्थिति से बेखबर और अनसुने नहीं रह सकते क्योंकि हमारी संस्कृति में मानवीय संवेदना के करुणा के मूल तत्व समाहित है ।कानून पारित होने पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा , ‘’भारत के लिए और हमारे देश की करुणा और भाईचारे की भावना के लिए यह एक एतिहासिक दिन है खुश हूं कि नागरिकता (संसोधन ) विधेयक- 2019 राज्यसभा में पारित हो गया।

लाखो करोड़ो लोगों  के दर्द को वर्तमान की मोदी सरकार ने सुना और उन्हें न्याय देने का संकल्प व्यक्त करते हुए यह कानून लेकर आई संसद में पारित होने के बाद इस कानून का देश व्यापी स्वागत भी हुआ। किंतु दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित कुछ दलों ने इसका विरोध किया है ।विरोध और असहमित को तो लोकतंत्र में स्वीकार किया जाता है किंतु अपने राज्य के राजनीतिक हित के लिए विरोध के नाम पर हिंसा और उपद्रव को प्रोत्साहित करना अत्यंत निंदनीय है, कांग्रेस और कुछ अन्य दलो ने नागरिकता संसोधन कानून को लेकर भ्रामक दुष्प्रचार कि एसी श्रंखला चलायी जिससे समाज में कटुता का भाव पैदा हो और उपद्रवी ताकतों को हौसला मिलें। दिल्ली, उतर प्रदेश , बिहार सहित देश के अनेक हिस्सों में विरोध के नाम पर हिंसा और आगजनी को राजनीतिक समर्थन कौन दे रहा था ,इससे देश की जनता वाकिफ हो चुकी है जो लोग आज इस कानून का विरोध कर रहे है ।अगर वे एक बाहर शरणार्थीयों के कैंप में जाकर उनकी दयनीय दशा और उनकी पीड़ा को देखें तो शायद वो भी इस कानून का विरोध न करें।

     हालांकि यह आश्चर्यजन है कि जो दल इस कानून  का आज विरोध कर रहे है वो शायद अपना इतिहास भूल चुके है ।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी , देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु , डा. श्यामा प्रसाद  मुखर्जी ,इंदिरा गांधी , जेबी कृपलानी , अब्दुल कलाम आजाद, दिग्गज समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया, कम्युनिष्ट पार्टी के एच एन मुखर्जी जैसे नेताओं ने भी कभी न कभी यह स्वीकार किया कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक रुप से प्रताड़ित अल्पसंख्यको को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए। गौरतलब है कि 2003 में यूपीए शासनकाल में प्रधानमंत्री रह चुके कांग्रेस पार्टी के नेता डा. मनमोहन सिंह ने भी राज्यसभा में पाकिस्तान व बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के हितो की रक्षा की मांग की थी।ममता बनर्जी और प्रकाश करात भी इस मुद्दे को पहले उठा चुके है ।यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे आज विरोध कर रहे है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में सरकार ने दुर्दशा का दंश झेल रहे उन लोगों के जीवन को गरिमा प्रदान की है।

विपक्ष के नेताओं द्वारा इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया जा रहा है लेकिन यहां एक तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अनुच्छेत 14 ‘तर्कसंगत वर्गीकरण ‘ की इजाज़त देता है ।तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर भारत के संविधान व्यवस्था में अनेक कानून प्रभावी रुप से लागू है ।अत:अनुच्छेत 14 के हवाले से इस कानून पर  संदेह करना सिर्फ भ्रामक अप- प्रचार को बढावा देने जैसा है ।नागरिकता कानून को लेकर एक और झूठ फैलाया जा रहा है कि यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है क्योंकि उन्हें इससे बाहर रखा गया है। परंतु यह कानून जिन तीन देशों से संबंधित वे इस्लाम को राज्य का धर्म घोषित किये देश है, लिहाजा वहां मुस्लिमों के धार्मिक प्रताड़ना का सवाल ही नहीं उठता है। प्रताड़ना इन तीन देशों के अल्पसंख्यक यानि हिंदु , बौद्द, जैन और पारसी समुदाय को झेलनी पड़ी है,इसलिए यह कानून उन्हें भारत की नागरिकता देने के सम्बन्ध में है। संसद के दोनों सदनों  में जवाब देते हुए माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी ने बेहद स्पष्टता से जो कहा उसके बाद किसी के मन मे कोई संदेह नहीं रहना चाहिए ।उन्होंने कहा कि ‘नेहरु लियाकत समझौते में भारत और पाकिस्तान ने अपने अल्पसख्यकों का ध्यान रखने का करार किया लेकिन पाकिस्तान ने इस करार का पूरा पालन नहीं किया ।1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 % थी 2011 में ये 3.7 % पर आ गयी ।1951 में भारत में मुस्लिम 9.8 % थे आज 14.23 % है , हमने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया आगे भी किसी के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव नही किया जाएगा, ये कानून किसी एक धर्म के लोगों के लिए नहीं लाया गया है ।ये इन तीने देशों से आये प्रताड़ित अल्पसंख्यको के संरक्षण के लिए है इसलिए इसमें आर्टिकल 14 का उल्लंघन नहीं होता ।यह सच है कि अगर पाकिस्तान द्वारा नेहरु –लियाकत समझौते का ठीक से पालन किया होता तो आज शरणार्थियों को भारत में शरण नहीं लेनी पड़ती अगर अफगानिस्तान में सिख समुदाय के लोगों के साथ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती तो उन्हे शरण नहीं लेना पड़ता।

नागरिक संसोधन कानून ने किसी भी देश के किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता लेने से नहीं रोका है, बशर्ते वह कानून के तहत मौजूदा योग्यता को पूरा करें पिछले छह वर्षों के दौरान लगभग 2830 पाकिस्तानी नागरिकों , 912 अफगानी नागरिको और 172 बांग्लादेशी नागरिको भारतीय नागरिकता दी गयी है। इनमें कई व्यक्ति तीन देशों में बहुसंख्यक समुदाय से है साथ ही नागरिकता कानून के खंड 5 और 6 के तहत विदेशी व्यक्ति के लिए नेचुरलाइसेशन और पंजीकरण से नागरिकता के प्रावधान जस के तस मौजूद रहेंगे।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल असम सहित पूरे नार्थ इस्ट में हिंसा भड़काने का प्रयास कर रहे है जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार असम समझौते को लागू करने के लिए प्रतिबद्द है ।गृह मंत्रालय की एक स्थायी समिति है। जो असम समझौते के कार्यान्वन को सुनिश्चित करती है ।यह विधेयक अनुच्छेत 371 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है। सरकार पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों की भाषायी ,सांस्कृतिक तथा सामाजिक पहचान को सुनिश्चित करने हेतु कटिबद्द है।

     सौ कि एक बात है कि नागरिकता संसोधन कानून से किसी भी भारतीय नागरिक के हित प्रभावित नहीं होंगे बल्कि यह कानून मानवता करने वाला सुनिश्चित है ।आज जब यह सपना साकार हुआ तो हमें इस कानून को लेकर जागरुकता के स्तर पर तो काम करना ही होगा , साथ ही विपक्ष के दुष्प्रचार से भी पर्दा उठाना होगा। हमारे यशस्वी नेतृत्व द्वारा इस कानून के रुप में एक एतिहासिक कार्य किया गया है, जिसकी आवश्यकता अनेक महान नेताओं ने बतायी थी।

नित्यानंद राय,भारत सरकार के गृह राज्यमंत्री
सौजन्य से उ0 प्र0 न्यूज फीचर्स

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